बालक की मौत के बाद परिजनों ने किया पोस्टमार्टम से इंकार, अस्पताल के बाहर हंगामा

Gaurav Sharma
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दमोह, आशीष कुमार जैन। बात है दमोह जिले के पथरिया थाने के बोतराई गावं की जहाँ एक दस साल का बालक निक्कू अहीरवाल साइकिल चलाते हुए गिर गया था और उसके सर में चोट आई थी। निक्कू के परिजन पहले पथरिया में उसका प्राथमिक उपचार कराने पहुंचे और जब वह उचित इलाज न होसका तब उसे जिला अस्पताल (hospital) लेकर गए।पर जबतक इलाज हो पाता उससे पहले ही निक्कू ने दम तोड़ दिया। जब बात आई मृतक बच्चे के पोस्टमार्टम (postmartam) की तब परिजनों ने पीएम कराने से इंकार कर दिया। जिसके बाद यहाँ तमाशा खड़ा हो गया।

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मना करने के बाद बच्चे की लाश को गोद में लेकर परिजन अस्पताल से भागने लगे लेकिन अस्पताल पुलिस चौकी के जवानो को जैसे ही इस बात का पता चला तो वह परिजनों को रोकने के लिए पहुंचे। परन्तु परिजन किसी भी प्रकार की बात मानने को तैयार नहीं थे।इसके बाद बीच सड़क पर हंगामा होने लगा और महिलायें पुलिस से उलझ गयीं।

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हालात बेकाबू होने पर अस्पताल चौकी मेँ पदस्थ जवानो को कोतवाली से अतरिक्त स्टाफ बुलाना पड़ गया जिसके बाद बीच सड़क पर चल रहा हंगामा शांत हुआ। पुलिस अधिकारियों की समझाइश के बाद आखिरकार परिजन पोस्टमार्टम के लिए राज़ी हुए।

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जैसा की आपको ज्ञात है की इस समय पूरे राज्य के साथ दमोह भी इन दिनों कोरोना कर्फ्यू और लाकडाउन के दौर में जिनमें कोरोना गाइडलाइन्स का पालन करना अनिवार्य है। आज बीच सड़क हुए इस सारे घटनाक्रम ने न केवल हॉस्पिटल के काम काज मेँ खलल डाला बल्कि कोविड नियमों की भी सरेआम धज्जिया उड़ाई।

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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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