दमोह की पहचान फुटेरा तालाब की स्थिति हो रही खराब, स्थानीय युवा बचाने की कर रहे कोशिश

Shashank Baranwal
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Damoh News: दमोह जिले की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखने वाला फुटेरा तालाब इन दिनों दुर्दशा के दौरे से गुज़र रहा है। जिसको लेकर लोगों में चिंता बढ़ने लगी है। नगर पालिका की उदासीनता के कारण तालाब की स्थिति खराब होती जा रही है। बता दें फुटेरा तालाब दमोह के स्वर्णिम इतिहास का उदाहरण है। जिसे भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा इसे सरंक्षित किया गया है। फुटेरा तालाब के किनारे स्थापित भगवान बिष्णु की वराह अवतार की प्रतिमा को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने धार्मिक महत्व का स्मारक माना है।

प्रशासन ने चुनावी व्यस्तताओं को बताकर नहीं दिया ध्यान

इस तालाब में हर साल गणेश और दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन भी होता है। तालाब धार्मिक आस्था का प्रतीक भी है। लेकिन प्रशासन इस पर ध्यान नही देता है। लिहाजा चारो तरफ गंदगी ही गंदगी ही देखी जा रही है। पानी जहरीला होने के साथ ही बदबू मारने लगा है। बीते साल स्थानीय युवाओं ने स्वयं सेवक बनकर तालाब की सफाई की थी। लेकिन पिछले महीनों में गणेश प्रतिमाओं और फिर बड़ी तादात में देवी प्रतिमाओं के विसर्जन के बाद तालाब की हालत खराब हो गई है। स्थानीय युवाओं ने मांग उठाई तो प्रशासन ने चुनावी व्यस्तताओं को बता कर ध्यान नही दिया।

स्थानीय युवा अपने स्तर पर कर रहे सफाई

वहीं जब थोड़ा दबाव बना तो कुछ घण्टे औपचारिकता करने के लिए सफाई की गई। जिसके बाद नगर पालिका ने पल्ला झाड़ लिया। वहीं एक बार फिर इस तालाब को बचाने की मुहिम से जुड़े युवा खुद आगे आये हैं। साथ ही मांग भी कर रहे हैं। युवाओं ने अपने स्तर पर तालाब का कचरा बाहर निकाला है और गंदे पानी में चूना डालकर पानी को साफ करने की कोशिश कर रहे हैं।

दमोह से दिनेश अग्रवाल की रिपोर्ट


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पत्रकारिता उन चुनिंदा पेशों में से है जो समाज को सार्थक रूप देने में सक्षम है। पत्रकार जितना ज्यादा अपने काम के प्रति ईमानदार होगा पत्रकारिता उतनी ही ज्यादा प्रखर और प्रभावकारी होगी। पत्रकारिता एक ऐसा क्षेत्र है जिसके जरिये हम मज़लूमों, शोषितों या वो लोग जो हाशिये पर है उनकी आवाज आसानी से उठा सकते हैं। पत्रकार समाज मे उतनी ही अहम भूमिका निभाता है जितना एक साहित्यकार, समाज विचारक। ये तीनों ही पुराने पूर्वाग्रह को तोड़ते हैं और अवचेतन समाज में चेतना जागृत करने का काम करते हैं। मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी ने अपने इस शेर में बहुत सही तरीके से पत्रकारिता की भूमिका की बात कही है–खींचो न कमानों को न तलवार निकालो जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालोमैं भी एक कलम का सिपाही हूँ और पत्रकारिता से जुड़ा हुआ हूँ। मुझे साहित्य में भी रुचि है । मैं एक समतामूलक समाज बनाने के लिये तत्पर हूँ।

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