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Tue, Dec 16, 2025

दमोह में फिर खुली विकास की पोल, सड़क न होने से गर्भवती को ट्रैक्टर-ट्रॉली पर ले जाना पड़ा अस्पताल

Written by:Sanjucta Pandit
दमोह जिले के चंदपुरा गांव में गर्भवती बबली लोधी को सड़क न होने के कारण ट्रैक्टर-ट्रॉली पर अस्पताल ले जाना पड़ा। छह किलोमीटर ऊबड़-खाबड़ सफर के दौरान वह दर्द से कराहती रही।
दमोह में फिर खुली विकास की पोल, सड़क न होने से गर्भवती को ट्रैक्टर-ट्रॉली पर ले जाना पड़ा अस्पताल

मध्य प्रदेश सरकार भले ही विकास के लाख दावे करती हो, लेकिन जमीनी हकीकत आए दिन इनकी पोल खोल देती है। दमोह जिले के चंदपुरा गांव से सामने आई तस्वीरें हर इंसान को सोचने पर मजबूर कर देती है कि आजादी के इतने दशक बाद भी धरातल पर बुनियादी सुविधाओं की कमी है। इन्हें देखने के बाद ऐसा ही लगता है मानो हम अभी भी 50 से 60 साल पीछे के भारत में ही जी रहे हैं। दरअसल, यहां 22 साल की बबली लोधी नाम की गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाने के लिए सड़क तक नसीब नहीं हुई। हालत ऐसी रही कि उसे ट्रैक्टर की ट्रॉली पर लिटाकर अस्पताल पहुंचाना पड़ा।

इस घटना ने सरकार के सभी विकास के दावों को सवालों में घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है। जहां एक ओर बुलेट ट्रेन चलाने की तैयारी की जा रही है, वहीं दूसरी ओर गर्भवती महिला को गंभीर हालत में अस्पताल ले जाने के लिए सड़क भी नहीं है।

ट्रॉली बनी एंबुलेंस

दरअसल, बबली लोधी को अचानक प्रसव पीड़ा शुरू हुई। परिवार और ग्रामीणों ने तुरंत उसे अस्पताल ले जाने की कोशिश की, लेकिन चंदपुरा से घटेरा उप-स्वास्थ्य केंद्र तक का रास्ता ऐसा है कि वहां कोई चारपहिया वाहन आसानी से नहीं जा सकता। सड़क कच्ची है और जगह-जगह गड्ढों से भरी पड़ी है। इस मजबूरी में गांव वालों ने ट्रैक्टर-ट्रॉली का सहारा लिया। जिस ट्रॉली का इस्तेमाल आमतौर पर खेत से अनाज या भूसा ढोने में होता है, उसी पर महिला को लिटाया गया और ऊबड़-खाबड़ रास्ते से करीब 6 किलोमीटर का सफर तय कर अस्पताल ले जाया गया।

दर्द से कराहती रही महिला

ट्रॉली में ले जाने के दौरान महिला दर्द से कराहती रही। इस दौरान साथ चल रहे परिजन तथा ग्रामीण सिस्टम को कोसते रहे। लोगों का कहना है कि सरकार विकास और स्वास्थ्य सुविधाओं के बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन हकीकत यह है कि गांव में ठीक-ठाक सड़क तक नहीं है। ऐसे में एंबुलेंस जैसी सुविधा तो सिर्फ नाम की रह गई।

वीडियो आया सामने

गर्भवती को ट्रॉली में ले जाने का वीडियो भी सामने आया है। यह देखकर लोग सवाल उठा रहे हैं कि आखिर आजादी के इतने साल बाद भी गांव की सड़कें क्यों नहीं बनीं? स्वास्थ्य सुविधा तक पहुंचने के लिए आज भी लोग इतनी तकलीफ क्यों झेलने को मजबूर हैं? ग्रामीणों का कहना है कि कई बार प्रशासन और नेताओं से पक्की सड़क की मांग की गई, लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन मिला। लोगों ने तंज कसते हुए कहा कि नेताओं की गाड़ियां तो हवाई जहाज जैसी रफ्तार से दौड़ती हैं, लेकिन आम जनता की जान अब भी ट्रॉली पर लटक रही है।

दमोह, दिनेश अग्रवाल