लॉकडाउन में घर लौटे मजदूर दोबारा पलायन करने को मजबूर, जानिए पूरा मामला

दमोह, गणेश अग्रवाल। लॉकडाउन के चलते मजदूरों के घर वापस आने के दौरान शासन द्वारा विभिन्न योजनाएं बनाकर इन मजदूरों को रोजगार दिए जाने की बात कही गई थी। लेकिन मजदूरों की माने तो उनका कहना है कि शासन के द्वारा बनाई गई योजनाओं से उनको मजदूरी नहीं मिल पा रही, जिससे वे लोग एक बार फिर एक जिले से दूसरे जिले और एक राज्य से दूसरे राज्य पलायन कर मजदूरी करने के लिए मजबूर हो रहे हैं।

दमोह जिले के विभिन्न अंचलों के मजदूर अब जिले से दूसरे स्थानों और दूसरे जिलों में पलायन करने को मजबूर हैं। इतना ही नहीं दूसरे राज्यों को जाने के लिए भी यह मजदूर नजर आ जाते हैं। ताजा मामला देर रात का है जहां पर कुछ मजदूर एक वाहन में भरकर पलायन करते दिखाई दिए, एक वाहन में 2 दर्जन से भी ज्यादा महिलाएं बच्चे और पुरुष मजदूरी के लिए पलायन करते दिखाई दिए। इन लोगों का कहना था कि उनको गांव में मजदूरी नहीं मिल रही, यही कारण है कि वह लोग दूसरे जिलों में पलायन कर वहां मजदूरी की तलाश करने जा रहे हैं। इतना ही नहीं यही लोग दूसरे राज्यों में भी पलायन कर मजदूरी करने के लिए जाते हैं। शासन द्वारा उनके ही गांव में उनको मजदूरी दिए जाने की योजनाओं को कार्यान्वित लॉकडाउन के वक्त से किया गया है, लेकिन वह सफल होती नजर नहीं आ रही।

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Gaurav Sharma

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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है। इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।