देवास, सोमेश उपाध्याय। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने आज नर्मदा बचाओ आंदोलन की याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। इस याचिका में उसने सरकार के उस आदेश को चुनौती दी है जिसके द्वारा भू अर्जन कानून 2013 का उल्लंघन करते हुए किसानों की जमीनों का मुआवजा अत्यन्त कम दिया जा रहा है। मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक व न्यायाधीश विजय कुमार शुक्ला की खंडपीठ ने राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए 23 फरवरी को अगली सुनवाई के आदेश दिया है। हाईकोर्ट में नर्मदा बचाओ आंदोलन का पक्ष एडवोकेट श्रेयस पंडित ने रखा।
क्या है मामला
नये भू अर्जन कानून 2013 में प्रभावितों की जमीन के मुआवजे की गणना के लिए प्रावधान है कि मुआवजे की गणना में ग्रामीण क्षेत्रों के लिए बाजार मूल्य में एक गुणांक से गुणा किया जायेगा जो ग्रामीण क्षेत्र की शहर से दूरी के आधार पर 1 से 2 होगा। इस प्रकार तय राशि पर 100% तोषण राशि दी जायेगी। अतः यदि गुणांक 2 है तो कुल मुआवजा बाजार मूल्य का 4 गुना बनेगा। ग्रामीण क्षेत्रों में जमीनों के दाम दबे होने के कारण इस प्रकार का प्रावधान किया गया था। परंतु मध्य प्रदेश सरकार ने दिनांक 29 सितंबर 2014 को एक आदेश निकालकर सभी ग्रामीण क्षेत्रों के लिये यह गुणांक 1 ही कर दिया जिससे प्रभावितों को उनके अधिकार से कहीं कम मुआवजा मिल रहा है।
क्या है याचिका
राज्य शासन के उपरोक्त आदेश को नर्मदा आंदोलन आंदोलन की ओर से वरिष्ठ कार्यकर्ता चित्तरूपा पालित द्वारा उच्च न्यायालय में चुनौती देते हुए बताया गया कि न सिर्फ यह आदेश भू अर्जन कानून 2013 का खुला उल्लंघन करता है वरन विस्थापितों को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्राप्त जीने के अधिकार का भी उल्लंघन करता है। उच्च न्यायालय को बताया गया कि गुजरात, महाराष्ट्र आदि राज्यों ने तो यह गुणांक 2 निर्धारित कर दिया है। उल्लेखनीय है कि पूरे मध्य प्रदेश में उपरोक्त आदेश के अनुसार ही भू अर्जन जारी है जिससे प्रभावितों का गंभीर नुकसान हो रहा है।
आंदोलन ने उच्च न्यायालय में राज्य सरकार के उक्त आदेश को खारिज कर कानून अनुसार गुणांक की घोषणा करने का आग्रह किया है और साथ ही इसे अभी तक इस कानून के तहत हुए सभी भू अर्जन कार्रवाइयों पर लागू कर उन प्रकरणों में अतिरिक्त मुआवजा देने की मांग की है।