सूर्य ग्रहण देखने और जानने का अद्भुत और प्राचीन तरीका

धार| राजेश डाबी । खगोलशास्त्र में दुनिया को भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण देन ग्रहणों की वैज्ञानिक व्याख्या है। इसके अलावा पृथ्वी द्वारा अपने अक्ष पर घूमते हुए सूर्य की परिक्रमा करने का सिद्धांत भी भारत के ज्योतिषियों ने ही सबसे पहले सिद्ध किया है। इसके लिए पूरी दुनिया आर्यभट, भास्कर, वराहमिहिर जैसी भारतीय ज्योतिषियों की ऋणी है। ज्योतिष और ग्रह-नक्षत्रों से जुड़ी मान्यताएँ आज भी परम्पराओं के साथ गाँवों में मानी जाती है। सूर्य ग्रहण को देखने के आधुनिक तरीकों के साथ-साथ कहीं-कहीं प्राचीन तरीके भी आजमाए जाते हैं। ये तरीके भी बड़े अजीब व अविश्वसनीय-से भले ही लगते हों पर इनसे सत्यता को झुठलाया नहीं जा सकता ।
आज हम आपको धार जिले के रिंगनोद गाँव में लेकर चल रहा है जहाँ से आप सूर्य ग्रहण को देखने के अजीब तरीके को जानेंगे। 21 जून 2020 को सूर्य ग्रहण संपूर्ण भारत में देखा गया। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सूर्यग्रहण जहाँ अति आधुनिक यंत्रों व दूरबीन से देखा जाता है वहीं प्राचीन काल में सूर्य ग्रहण को देखने की प्रणाली के द्वारा भी कुछ जगहों पर देखा गया इसी कड़ी में जिले के रिंगनोद में श्रीराम बड़ा मंदिर के समीप युवा टोली ने पीतल की बड़ी थाली में पानी भरकर पुराने समय में धान को कूटने वाले मूसल को खड़ा किया तो मूसल चुंबक की भाँति खड़ा हो गया। प्राचीन पद्धति में आधुनिक यंत्र नहीं होते थे जिसमें सूर्य ग्रहण को परखने की यह एक सरल विधि थी। इसी के आधार पर पुराने लोग पंचांग में सूर्य ग्रहण को देखा करते थे व दान- पुण्य करके धर्म लाभ लेते थे। सुबह 10 बजकर 10 मिनट पर मूसल को खड़ा किया तो वह खड़ा होकर  1 बजकर 52 मिनट पर सूर्य ग्रहण के मोक्ष काल होने पर गिर पड़ा। साढ़े 3 घंटे के सूर्य ग्रहण काल के दरमियान मंदिरों में भजन भाव के आयोजन हुए वहीं  श्रद्धालुओं ने दान भी दिया। खुली आँखों से सूर्य को देखने की मनाही के बाद कुछ लोगों ने एक्स-रे व काले चश्मे के द्वारा सूर्यग्रहण के नजारे को देखा।

About Author
न्यूज डेस्क, Mp Breaking News

न्यूज डेस्क, Mp Breaking News