ग्वालियर। अपनी विशेष भाषण शैली, मिलनसार व्यवहार सहित अनेक खूबियों के चलते दुनिया भर के लोगों के चहेते देश के पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी स्वाद के भी शहंशाह थे। ग्वालियर में जन्मे अटल जी को नयाबाजार के बहादुरा के देसी घी के लड्डू और दौलतगंज वाली चाची के यहाँ के तीखे मंगोड़े बहुत पसंद थे। दिल्ली पहुँचने के बाद केन्द्रीय मंत्री से प्रधानमंत्री तक के सफ़र में फिर अंतिम सांस तक अटल जी इन दिनों चीजों का स्वाद याद रहा। ग्वालियर से जो भी दिल्ली अटल जी के पास जाता लड्डू और मंगोड़े साथ जाते।
ग्वालियर स्थित शिंदे की छावनी के कमलसिंह के बाग़ मोहल्ले में 25 दिसंबर 1924 को जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी की बहुत सी यादे यहाँ बसी हैं। उनका बचपन, उनके बालसखा, उनकी स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा और फिर राजनैतिक सफ़र ,सभी का ग्वालियर साक्षी रहा है। अटल जी से जुड़े वैसे तो बहुत से किस्से लोग जानते है। लेकिन उनके खाने के शौक की चर्चा आज भी होती है । नया बाजार स्थित बहादुरा स्वीट्स के संचालक अम्बिका प्रसाद बताते हैं कि अटल जी कभी भी दुकान पर अकेले नहीं जाते थे। उनके साथ स्वर्गीय शीतला सहाय, नरेश जौहरी सहित 4 से 5 दोस्त हमेशा होते थे। मैं बहुत छोटा था, अटल जी लड्डू खाते हुए अक्सर कविताएं भी सुनाया करते थे। उनको लड्डू के अलावा कचौड़ी भी विशेष पसंद थी। ग्वालियर से जो भी अटलजी से मिलने जो भी दिल्ली जाता यहां से लड्डू लेकर जरूर जाता था। अटलजी से जुड़े संस्मरणों को याद करते हुए अम्बिका प्रसाद कहते हैं कि पिताजी बहादुर प्रसाद शर्मा अक्सर कहते थे कि यह बहुत ईमानदार आदमी हैं, इन जैसे इंसान को देश का प्रधानमंत्री होना चाहिए। और जब अटलजी केन्द्रीय मंत्री बने तो पिताजी काफी खुश हुए और मिठाई भी बांटी थी। 1987 में पिताजी बहादुर प्रसाद का निधन हो गया, लेकिन अटलजी के लिए लड्डू यहाँ से। लगातार जाते रहे। प्रधानमंत्री बनने के बाद जब अटलजी ग्वालियर आए थे, तब तो उनके मिलने वाले विशेष रूप से लड्डू लेकर गए थे।
प्रधानमंत्री बनने के बाद भी मंगोड़े वाली चाची को नहीं भूले अटल जी
बहादुरा के लड्डू के अलावा अटल जी को दौलतगंज स्थित अग्रसेन पार्क की दीवार पर मंगोड़े वाली चाची रामदेवी की छपरे में दुकान है। अटल जी को यहाँ के तीखे मंगोड़े बहुत पसंद थे। 2007 में मंगोड़े वाली चाची रामदेवी की मौत हो गई। अब दुकान की देखभाल करने वाले उनके बेटे रामू सिंह बताते हैं कि ‘मेरी मां रामदेवी के हाथ के मंगोड़े अटलजी को बहुत पसंद थे। मां बताती थी कि बचपन में अपने पिता के साथ अटलजी हमारे यहां मंगोड़े खाने आते थे। मां उन्हें सुदामा कहकर बुलाती थी। प्रधानमंत्री बनने के बाद जब अटलजी ग्वालियर आए तो एक कर्मचारी को भेजकर उन्होंने अम्मा को बुलवाया था।”अटलजी उन्हें मंगोड़े वाली चाची कहते थे, हालचाल पूछने के बाद जब वे उन्हें एक लाख का चेक देने लगे तो अम्मा ने मना कर दिया। अम्मा ने कहा कि यदि कुछ देना ही है तो जिस जगह पर मैंने तुम्हे आशीर्वाद दिया था, वहां मेरी दुकान चलती रहे बस इतना कर दो। इसके बाद से नगर निगम ने कभी हमें परेशान नहीं किया।’ रामू बताते हैं कि दौलतगंज में पहले दुकान के सामने ही पुलिस चौकी होती थी, जिसमें अटलजी रहते थे। वह पिता के साथ मंगोड़े खाने आते थे, अम्मा ने उनके पिता से कहा था कि यह व्यक्ति एक दिन बड़ा आदमी बनेगा।
आधे कच्चे, आधे तले मंगोड़े दिल्ली जाते थे
अटलजी को मंगोड़े इतने पसंद थे कि वह जब काफी दिन तक ग्वालियर नहीं आ पाते थे तो पार्टी कार्यकर्ताओं को मंगोड़े लाने भेजते थे। रामू सिंह चौहान बताते हैं कि कई साल तक यह सिलसिला जारी रहा है। कार्यकर्ताओं को मैं आधे कच्चे आधे तले हुए मंगोड़े पैक करके दे देता था। दिल्ली पहुंचने के बाद अटलजी उनको तलकर बड़े चाव से खाते थे।
छपरेनुमा दुकान में रखी है अटल जी को मंगोड़े खिलाती रामदेवी की तस्वीर
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को मंगोड़े खिलाती रमादेवी की तस्वीर अब भी छपरे में लगी हुई है। अटलजी के निधन का समाचार मिलने के बाद रामू ने दो दिन दुकान बंद रखी थी। साथ ही अटलजी की तस्वीर के आगे मंगोड़े का भोग भी लगाया था।