ग्वालियर।अतुल सक्सेना। जीवाजी विश्वविद्यालय के अधिकारियों को एक छात्र की परीक्षा नहीं कराना महंगा पड़ गया। शासन ने इस लापरवाही के लिए दोषी क्लर्क के साथ साथ परीक्षा नियंत्रक और डिप्टी रजिस्ट्रार पर निलंबन की कार्रवाई के निर्देश दिये हैं।
जानकारी के अनुसार छात्र विकास सागर ने कॉलेज ऑफ लाइफ साइंस में 2 वर्षीय डिप्लोमा इन एक्सरे टेक्नीशियन कोर्स में एडमिशन लिया था। छात्र ने एक बार परीक्षा दी जिसमें वो फेल हो गया नियमानुसार उसे एक अवसर और मिलना चाहिए था। लेकिन इसके बाद उसकी परीक्षा नहीं करवाई गई। जब पूछताछ हुई तो कॉलेज ऑफ लाइफ साइंस ने जवाब दिया कि छात्र ने 2014-16 के सत्र में प्रवेश लिया था। दो वर्ष के कोर्स में एक बार परीक्षा होती है इसमें छात्र फेल हो गया। इसके बाद छात्र को एक मौका और दिया जाना था लेकिन जीवाजी विश्वविद्यालय ने सिलेबस नहीं होने की बात कहकर परीक्षा नहीं करवाई । छात्र ने जुलाई 2019 में सीएम हेल्प लाइन में शिकायत की इसपर एल 1 प्रभारी डिप्टी रजिस्ट्रार अमित सिसोदिया ने शिकायत सुनने की बजाय से चिकित्सा परिषद को भेज दिया। जबकि ये परीक्षा जीवाजी विश्वविद्यालय को करानी थी। यहाँ सुनवाई नहीं हुई तो मामला मुख्यमंत्री के जन अधिकार कार्यक्रम में छात्र लेकर पहुंचा। मामले की पड़ताल परीक्षा नियंत्रक डॉ आरके एस सेंगर ने की तो प्रारंभिक जांच में मेडिकल शाखा के क्लर्क अभिनंदन पाठक की लापरवाही सामने आई। इनकी दो वेतन वृद्धि रोकने का प्रस्ताव भेजा दिया गया। मंगलवार की सुबह कलेक्टर ने इस मामले को लेकर रजिस्ट्रार और परीक्षा नियंत्रक को तलब कर लिया। मंगलवार की शाम जन अधिकार के तहत कलेक्ट्रेट में वीडियो कॉंफ़्रेंस हुई। जिसमें कुलपति संगीता शुक्ला और रजिस्ट्रार आई के मंसूरी पहुंचे। बैठक में क्लर्क पर कार्रवाई की बात कही गई। लेकिन भोपाल में बैठे अधिकारियों ने केवल क्लर्क को दोषी ठहराए जाने पर नाराजी जताई और उसके साथ परीक्षा नियंत्रक और डिप्टी रजिस्ट्रार पर भी निलंबन की कार्रवाई के निर्देश दिये।