पुलिस की पहल बनी मिसाल, आदिवासी बच्चों को किया पढ़ने के लिए प्रेरित, गांव वालों ने ढोल नगाड़ों के साथ किया विदा

Atul Saxena
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Gwalior News : पुलिस का नाम सुनते ही एक भय, डर का भाव सबसे पहले मन में आता है लेकिन अब ये भाव में बहुत बदलाव आ रहा है , इसका कारण ये है कि पुलिस विभाग की बदलती हुई कार्यशैली, कम्युनिटी पुलिसिंग की तरफ बढ़ती मप्र पुलिस अपने सामाजिक दायित्व को समझते हुए ऐसे काम कर रही है जो एक मिसाल बन रहे हैं… हम आपको आज ऐसे ही एक मामले के बारे में बताने जा रहे हैं जिसकी चर्चा गांव से लेकर शहर तक और शहर से लेकर राजधानी तक हो रही है …

शिक्षा की रौशनी अभी भी बहुत से बच्चों से दूर 

मामला शिक्षा से जुड़ा हुआ है, आप चौंक गए होंगे कि पुलिस की बात और मामला शिक्षा से जुड़ा… जी हाँ ये सच है… हम सभी जानते हैं कि शिक्षा जीवन का वो महत्वपूर्ण माध्यम है जो आपको जीवन में उजाला करता है, लेकिन हकीकत ये है कि आज भी बहुत से क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ रहने वाले बच्चे अशिक्षा के अंधकार में अपना जीवन बिता रहे हैं, वे ना अपने इस अधिकार को समझते है और ना ही उन तक शिक्षा का अधिकार कानून की बात पहुँच पाती है।

सहरिया आदिवासी परिवारों के अधिकांश बच्चे हैं शिक्षा से वंचित  

ग्वालियर जिले का ऐसा ही क्षेत्र है घाटीगांव, जहाँ रहने वाले ग्रामीणों में सहरिया आदिवासियों की संख्या ज्यादा है, इनके पास जीवन यापन के लिए मजदूरी और जंगल से लकड़ी काटना दो काम हैं। पुरुष दिहाड़ी मजदूरी करते हैं और महिलाएं बच्चे कुल्हाड़ी लेकर सुबह सुबह जंगल जाते है और लकड़ी काटकर लाते हैं, जंगल से लौटकर महिलाएं घर के काम में लग जाती हैं  और बच्चे गांव में खेलते रहते हैं।

पुलिस की पहल बनी मिसाल, आदिवासी बच्चों को किया पढ़ने के लिए प्रेरित, गांव वालों ने ढोल नगाड़ों के साथ किया विदा

अब आप सोच रहे होंगे कि इस सबमें पुलिस का क्या रोल , जी हाँ सही सोच रहे हैं आप, ग्वालियर कलेक्टर अक्षय कुमार सिंह और पुलिस अधीक्षक राजेश सिंह चंदेल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मंशानुरूप जिले में सामाजिक कार्य करने के लिए अपने अपने अधिकारियों को निर्देशित करते रहते हैं।

SDOP संतोष पटेल जब पहुंचे आदिवासियों के बीच तो चौंक गए 

ग्वालियर पुलिस में पदस्थ घाटीगांव एसडीओपी संतोष पटेल खुद ऐसे सामाजिक कार्यों में आगे रहते हैं, उन्हें लोगों की तकलीफों में अपनी तकलीफ दिखाई देती है, वे अपने क्षेत्र में भ्रमण पर रहते हैं तो लोगों की परेशानियाँ पूछते हैं।  इसी दौरान उन्हें पता चला कि उनके आदिवासी ब्लाक की एक बस्ती है तकियापुरा जहाँ सहरिया आदिवासी परिवार रहते हैं, जब एसडीओपी संतोष पटेल ने इन लोगों से बात की तो पता चला कि अधिकांश बच्चे स्कूल नहीं जाते।

पुलिस की पहल बनी मिसाल, आदिवासी बच्चों को किया पढ़ने के लिए प्रेरित, गांव वालों ने ढोल नगाड़ों के साथ किया विदा

बच्चों ने बताया कि क्यों नहीं होता स्कूल में एडमिशन फिर पुलिस ने किया ये काम

शिक्षा के बिना बच्चों के भविष्य की कल्पना कर एसडीओपी ने जब इसका कारण पता किया तो मालूम चला कि एडमिशन के लिए जरुरी दस्तावेज जैसे आधार कार्ड, समग्र आईडी, जाति प्रमाणपत्र इन बच्चों के परिवार के पास है ही नहीं इसलिए एडमिशन नहीं होता।  SDOP ने जब बच्चों से पढ़ने के लिए सवाल किये तो बच्चों ने कहा कि पढ़ना है लेकिन एडमिशन नहीं होता , दो बच्चे भारत आदिवासी एवं रुस्तम आदिवासी ने विशेष रुचि दिखाई तो एसडीओपी ने व्यक्तिगत रुचि लेकर 7 दिन  में दोनों के आधार कार्ड , समग्र आईडी  व जाति प्रमाण पत्र बनवा दिए।

10 सरकारी गाड़ियाँ दो बच्चों को लेने पहुंची, गांव वालों ने ढोल नगाड़ों से पढ़ने के लिए किया विदा 

डॉक्यूमेंट्स बन जाने के बाद आज दोनों बच्चों को लेने घाटीगांव से 10 गाड़ियां आदिवासी बस्ती तकियापुरा पहुंची, जिसमें एसडीओपी संतोष पटेल, थाना प्रभारी घाटीगांव शैलेन्द्र गुर्जर, बीआरसी शशिभूषण श्रीवास्तव, शिक्षक वीरेंद्र गुप्ता व अन्य शासकीय कर्मचारी शामिल थे। जब ये शासकीय अमला पहुंचा और दो आदिवासी बच्चों को आदिवासी छात्रावास घाटीगांव लाने लगा तो गांव की बुजुर्ग महिलाओं ने हल्दी चावल का टीका कर फूल माला पहनाई और युवाओं ने ढोल नगाड़े के साथ दोनों बच्चों को आशीर्वाद देकर बेहतर भविष्य के लिए रवाना किया। पुलिस ने अपनी गाड़ी से लाकर दोनों छात्रों को आदिवासी जूनियर छात्रावास में प्रवेश दिलाया।

पुलिस की पहल बनी मिसाल, आदिवासी बच्चों को किया पढ़ने के लिए प्रेरित, गांव वालों ने ढोल नगाड़ों के साथ किया विदा

आदिवासी छात्रावास में हुआ जोरदार स्वागत, बच्चों ने नए साथियों के लिए रास्ते में बिछाये फूल, पहनाई माला  

खास बात ये है कि जब भारत आदिवासी और रुस्तम आदिवासी छात्रावास पहुंचे तो वहां के बच्चों ने दोनों का गर्मजोशी से स्वागत किया, घाटीगांव आदिवासी जूनियर बालक छात्रावास में प्रवेश करते हुए प्रबंधक नरेश कुमार सुमन व छात्रों ने रास्ते को फूलों से सजाकर रखा था और दोनों ओर लाइन में खड़े होकर फूल माला के साथ अनोखा स्वागत किया ताकि दोनों नवागत बच्चे घुलमिल कर पढ़ाई के लिए प्रेरित हों उन्हें ये महसूस ना हो कि वे कहीं अनजान जगह अनजान लोगों एक बीच आ गए हैं।

आदिवासी छात्रावास की व्यवस्था देखकर चौंक गए SDOP पटेल, बोले ऐसी व्यवस्था तो पुलिस के पास भी नहीं 

छात्रावास को देखकर SDOP पटेल ने कहा कि इतनी अच्छी व्यवस्था पुलिस के हॉस्टल में भी नहीं है, इतनी सुंदर फर्श तो उनके बंगले में भी नहीं है। पुलिसकर्मियों को ट्रेनिंग और थाने में इतनी बेहतर सुविधा नहीं मिलती है जितनी अच्छी छात्रावास में है। दोनों के परिजन हॉस्टल की सुविधाएं देखकर बहुत खुश थे, उन्होंने कहा कि वे गांव से अधिकतम छात्रों को भेजने के लिए प्रेरित करेंगे।

मुझे लगा कि इस उम्र में कुल्हाड़ी की जगह इन्हें कलम पकड़ा दी जाये तो ये बेहतर भविष्य बना सकते हैं : SDOP पटेल 

SDOP संतोष पटेल ने कहा कि ये परिवर्तन है जो समाज को नई दिशा देगा, अधिकतम बच्चे स्कूल जाएँगे और पढ़ेंगे, उन्होंने कहा कि मैं भले ही पुलिस अधिकारी हूँ लेकिन मेरा मानवीय और सामाजिक कर्तव्य भी है कि जो बच्चे स्कूल नहीं जाते उन्हें शिक्षा मिलनी चाहिए, मुझे लगा कि इस उम्र में कुल्हाड़ी की जगह इन्हें कलम पकड़ा दी जाये तो ये बेहतर भविष्य बना सकते हैं , कहते हैं कि बच्चों का भविष्य अच्छा होगा तो राष्ट्र का भविष्य भी अच्छा होगा।

अधिकारियों ने लिया संकल्प ग्रामीणों की करेंगे काउंसलिंग , बच्चों को भेजेंगे स्कूल 

खास बात ये है कि जमीन पर सोने वाले बच्चे आज से टेबल कुर्सी में बैठकर खाना खाएंगे और अपने भविष्य की कलाकृति स्वयं बनाएंगे। SDOP और BRC ने इस अवसर पर ये भी कहा कि आदिवासी छात्रावास में सीटें खाली रहने की वजह आदिवासियों के पास आवश्यक दसतावेज एवं शिक्षा के प्रति रुझान न होना है इसलिए हमने संकल्प लिया है कि बस्ती में जाकर परिजनों व बच्चों की काउंसलिंग करेंगे और दस्तावेज तैयार करवाएंगे जिसका फायदा अन्य बच्चों को मिलेगा। आने वाले समय में खाली सभी सीटें उसी बस्ती के बच्चों से भरने की उम्मीद है।

ग्वालियर से अतुल सक्सेना की रिपोर्ट


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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ.... पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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