Gwalior News : आमतौर पर जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन पर तोहमत लगती है कि यहाँ बैठे अधिकारी गरीबों का शोषण करते हैं, किसी गरीब की सुनवाई नहीं करते लेकिन आज ग्वालियर जिले के घाटीगांव क्षेत्र में जो कुछ हुआ उसने इन आरोपों को झुठला दिया। यहाँ पुलिस और प्रशासन का वो संवेदनशील चेहरा दिखाई दिया जिसकी कल्पना शायद ही कोई करता हो।
मामला ग्वालियर जिले के घाटीगांव (बरई) ब्लाक का है, यहाँ घाटीगाँव तहसील में आदिवासी एकता महासभा व किसान महासभा द्वारा 3 मांगों, श्मशान को कब्जे से मुक्त कराना, वन भूमि के आवंटित पट्टों में कब्जा दिलाना और पेयजल की समस्या को लेकर धरना दिया जा रहा था। जैसे ही कलेक्टर अक्षय कुमार सिंह और एसपी राजेश सिंह चंदेल को श्मशान घाट की भूमि पर कब्जा का पता चला तो उन्होंने तत्काल एसडीएम घाटीगाँव अनिल बनवारिया व एसडीओपी घाटीगाँव संतोष पटेल को मौके पर जाकर निराकरण करने के निर्देश दिए।
तहसीलदार सुरेश यादव व थानेदार राहुल सेंधव को साथ में लेकर एसडीओपी व तहसीलदार आदिवासियों के साथ सिमरिया गांव के श्मसान घाट पर पहुंचे जहाँ गेहूं की नरवाई खड़ी थी और श्मशान का कोई नामोनिशान नहीं था। कुछ दिन पहले गजुवा सहरिया आदिवासी का जवान बेटा खत्म हुआ था जिसको अतिक्रामक अमर सिंह बघेल ने अपनी निजी जमीन बताकर दाह संस्कार नहीं करने दिया था, जिसकी खाक (भस्मी) अभी भी सबूत के रुप में दिख रही थी।
एसडीओपी संतोष पटेल ने वन विभाग के रेंजर सागर शुक्ला की मदद से कटीला तार मंगवाया और पुलिस प्रशासन ने 30 मिनट में 30 गड्ढे खोदकर तार फेंसिंग कर श्मशान को अतिक्रमण से मुक्त करवा दिया। एसडीओपी संतोष पटेल आदिवासियों के साथ जमीन पर उन्हीं की तरह घुटनों के बल बैठे और उन्हें विश्वास दिलाया कि प्रशासन और पुलिस हमेशा आपके साथ है आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है।
जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन के इस संवेदनशील कार्य में पटवारी दिनेश भोज, सचिव रजनी साहू, पुलिस आरक्षक राकेश शर्मा, सचिन जाटव, प्रियंका वर्मा व कोटवार संतोष की भूमिका सराहनीय रही, इन सभी ने दोपहर की कड़ी धूप में सब्बल, गेंती लेकर तार फेंसिंग करवाई और आदिवासियों के मन में पुलिस एवं प्रशासन के प्रति विश्वास की भावना को बनाये रखा।
ग्वालियर से अतुल सक्सेना की रिपोर्ट
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Atul Saxena
पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....
पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....