इटारसी, राहुल अग्रवाल। पचमढ़ी में इन दिनों 12 साल में खिलने वाले नीलकुरिंजी की प्रजाति के फूल खिल रहे हैं जो सैलानियाें के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। नीले रंग के इन फूलों ने सतपुड़ा की वादियों सुंदरता बढ़ा दी है। हालांकि यह फूल नीलकुरिंजी नहीं है लेकिन उसी प्रजाति का है। इसका वैज्ञानिक नाम स्ट्रोबिलान्थस कलोसा है। स्थानीय भाषा में इसे कार्वी कहते हैं।
स्ट्रोबिलान्थस कलोसा का फूल खिलते ही तितलियों और मधुमक्खियों का झुंड लग जाता है। औषधीय गुण के कारण इसका शहद 15 वर्षों तक खराब नहीं होता है। राेचक तथ्य ये कि इसकी खोज पहली बार 19वी शताब्दी में मुंबई के एक ब्रिटिश निवासी नीस ने की थी। ये महाराष्ट्र, मप्र, गुजरात और कोंकण और उत्तरी कैनेडा में मिलता है। राज्य वन अनुसंधान संस्थान जबलपुर की सीनियर रिसर्च ऑफिसर डॉ. अंजना राजपूत बताती हैं कि स्ट्रोबिलान्थस कलोसा के पाैधे में 7 साल में फूल आता है। हर पौधा अपने जीवनकाल में सिर्फ एक बार ही खिलता है और फूल खिलने के बाद खत्म हो जाता है। बीज को फिर से पौधा बनने में और बड़ा होने में करीब 7 वर्ष लग जाते हैं।
आपको बता दें कि 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र माेदी ने 15 अगस्त काे लालकिले से दिए भाषण में भी नीलकुरिंजी के फूल का जिक्र किया था। इसके बाद लाखाें लाेग इस फूल को देखने केरल पहुंचे थे। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि ‘हमारे देश में 12 साल में एक बार नीलकुरिंजी (Neelakurinji) का फूल उगता है। इस साल दक्षिण की नीलगिरि की पहाड़ियों पर नीलकुरिंजी का पुष्प जैसे मानों तिरंगे झंडे के अशोक चक्र की तरह देश की आजादी के पर्व में लहलहा रहा है।’