इंदौर, आकाश धोलपुरे। कुछ शरारती तत्वों द्वारा इलेक्ट्रॉनिक चैनल की स्टाइल में ब्रेकिंग फॉर्मेट के तहत आगामी 8 दिनों के लॉक डाउन को लेकर अफवाह फैलायी जा रही है। इस वजह से हर व्यक्ति एक दूसरे से इस बात की पुष्टि करते नजर आ रहा है कि क्या वाकई इंदौर में दोबारा लॉक डाउन लग सकता है ?
लॉक डाउन की अफवाह बीते 2 दिनों से इंदौर में सोशल मीडिया पर जारी है और इस मामले में इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह ने मीडिया से चर्चा में स्पष्ट तौर पर अफवाहों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि इस संदर्भ में न तो केंद्र से और ना ही राज्य सरकार की ओर से कोई निर्देश प्रशासन को दिए गए है। जिसका सीधा मतलब है कि इंदौर में लॉक डाउन को लेकर कोई फैसला ही नहीं लिया गया है।
बता दे कि इंदौर में कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए कुछ व्यापारिक संगठनों ने समय मे परिवर्तन जरूर किया है और कई व्यापारिक संगठन स्वेच्छा से बाजार बंद रखने के निर्णय के लिए फिलहाल चर्चारत है, जिसका सीधा मतलब ये है कि यदि शहर हित मे कोई बाजार बंद रहे तो, ये उस बाजार संगठन का फैसला हो सकता है ना कि प्रशासन का।
ये बात साफ है कि आगामी दिनों में कोई प्रशासनिक लॉक डाउन नहीं है और लोग अपनी इच्छा से कोरोना संक्रमण की चैन को ब्रेक करने के लिए स्वयं अपने प्रतिष्ठान बंद रखने का फैसला ले सकते है। किसी पर कोई प्रशासनिक दबाव नहीं है। वही कोविड – 19 के दिशा निर्देशों के पालन के लिए जनता और व्यापारियों को गम्भीरता दिखाना भी वक्त की जरूरत है। ऐसे में हम आपसे अपील करते है कि किसी भी अफवाह पर ध्यान न दे और कोविड नियमो का पालन कर शहर को स्वस्थ रखने में अपना सहयोग दें।
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Gaurav Sharma
पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।
इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।