ऐसे थे बापू हर उम्र में खुद को प्रशिक्षु मानते थे, जातिवाद से कोसो ऊपर थे

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आकाश धोलपुरे

मैं पत्रकारिता में नया – नया था और मुझे पत्रकारिता के गुर सिखाने के लिए मेरे संपादक और मार्गदर्शक सुनील जोशी जी ने रात की रिपोर्टिंग का काम सौंपा था और उस वक्त रात की रिपोर्टिंग को सजाये काला पानी समझा जाता था लेकिन बापू याने महेंद्र बापना जी रात में आते थे तो डर भी था क्योंकि अपन नए थे लेकिन जब मुलाकात हुई उन्होंने जाना और सीधे मेरे पापा का नाम पूछा मैंने बताया भी। उसके बावजूद उन्होंने कोई रहम नही किया सिर्फ बातो ही बातो में समझाया कि काम कैसे करते है । एक रात एक ऐसे वाक्या हुआ कि मैं समझ गया उन्हें बापू क्यों कहा जाता है । दरअसल, दो कम उम्र के बच्चे उनके पास आये और वो भी किसी का रेफरेंस लेकर। दोनों  ने कहा कि उन्हें पत्रकारिता सीखनी है तब उनका जबाव था मैं स्वयं प्रशिक्षु हु मुझसे क्या सीखोगे। तब मेरे दिमाग मे एक बात आई जिनके बचपन से लेकर संघर्ष तक सब कहानी मैं जानता हूं उन्होंने ऐसा क्यों बोला लेकिन वास्तव में बो बात समझ उसी समय आ गई थी यदि सीखना है तो खुद मेहनत करो। बस बापू की इस सीख को सीखते गए और ऐसा समय भी आया कि उन्होंने कई खबरों के बारे में जानने के लिए फोन भी लगाया मुझे तब लगा कि मैं भी पत्रकारिता सीखने की स्थिति में आ रहा हु। जय हो बापू आप हमेशा सभी के दिल मे रहोगे। ईश्वर आपको आत्मीयता से स्वीकार कर दोबारा इस दुनिया मे भेजे यही कामना है क्योंकि जातिवाद, धार्मिकता से उठकर सिर्फ पत्रकारिता के बारे में सोचकर अलग हटकर मुझे मार्गदर्शित किया है।


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