जबलपुर|
जल संरक्षण को लेकर सरकार ने लाख प्रयास किया।करोड़ो रु खर्च भी किए पर पर सफलता नही मिली।अपने दम पर वेस्टेज पानी को कैसे संरक्षण करना है इसके लिए जबलपुर के एक इंजीनयर ने प्रयास किया जिसमें उन्हें सफलता भी मिली लिहाजा केन्द्र सरकार ने जल संरक्षण को लेकर उन्हें अवार्ड देकर सम्मानित भी किया।संश्कारधानी जबलपुर के इंजीनयर दुष्यन्त दूबे को हाल ही में दिल्ली में हुए एक कार्यक्रम में केन्द्रीय राज्य मंत्री अर्जुन मेघवाल ने पुरुस्कृत करते हुए अवार्ड दिया।देश भर से जल संरक्षण को लेकर आए इंजीनियरो में जबलपुर के दुष्यन्त दूबे को तीसरा स्थान मिला है।जल संरक्षण को लेकर कर रहे अपने कामो को मीडिया से साझा करते हुए दुष्यन्त दूबे ने बताया कि कैसे हम वेस्टेज पानी को सहेज कर कैसे उसका उपयोग दुबारा कर सकते है।सैप्टिक टैंक के पानी जिसे की फीकल कहते है उसे सहेज कर फिर से पानी का उपयोग किया जा सकता है।इंजीनयर दुष्यन्त दूबे का कहना है कि इस समय न सिर्फ भारत सरकार बल्कि पूरा देश फीकल मे काम कर रहा है।सैप्टिक टैंक से निकला पानी जिसे स्लज कहा जाता है उस पानी को नगरीय निकाय सक कर निकालती थी और कही भी डाल देती थी जिससे कई तरह की बीमारी फैलती थी।इंजीनयर दूबे की माने तो उस स्लज को डिग्रेड कर पानी को फिर से उपयोग में लाकर गॉर्डनिंग-वाशिंग में उपयोग कर सकते है।स्लज से पानी तक के सफर के लिए इंजीनियर ने खुद का अपना एक पेटेंट भी करवाया है।अभी तक छत्तीसगढ़ के अम्बिकापुर और मध्यप्रदेश के उज्जैन में लग चुका है।फीकल(सैप्टिक टैंक का पानी) को खुले में फेंकने से हैजा-कालरा जैसी कई गंभीर बीमारी होती है।फीकल को लेकर हालांकि अभी सरकार को ज्यादा जानकारी नही है पर जैसे जैसे लोग इसे जानने लगे है वैसे वैसे फीकल से पानी को सहेजने की विधि भी जान रहे है।वही नदियों में हो रहे प्रदूषण को लेकर इंजीनयर दुष्यन्त ने कहा कि किसी भी सभय्ता का विकास नदियों से जुड़ा होता है।और नदिया जो प्रदूषित होती है वो नालों से होती है।नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिए सरकार अगर इस तरह के प्लांट लगाने में दिलचस्पी दिखाए तो निश्चितरूप से काफी हद तक नदियों को प्रदूषण रहित किया जा सकता है।खास बात ये है कि फीकल से जुड़े प्लांट को लगाने के लिए बहुत कम पैसे लगते है।