जंगल कटाई नीति पर हाई कोर्ट का कड़ा रुख, कहा- जैसे “पुष्पा” में तस्कर, विधायक और अफसर सिंडिकेट चलाते हैं MP में भी है वही स्थिति

लार्जर बेंच ने 1500 से अधिक पृष्ठों में दस्तावेज रिकॉर्ड का हवाला दिया। कोर्ट ने कहा है कि पर्यावरणविद राजवीर सिंह हुरा और एनजीओ पर्यावरण प्रहरी के पदाधिकारी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी जिसमें पेश किए गए दस्तावेजों ने हमें चौंका दिया। इसमें इंदौर के वन प्रभाग के अधिकारियों और वन विभाग के भीतर आंतरिक रूप से आदान-प्रदान किए गए पत्राचार शामिल हैं।

Atul Saxena
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High Court’s comment on deforestation policy MP : मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की लार्जर बेंच ने आज जंगलों की कटाई की नीतियों को लेकर मध्य प्रदेश सरकार पर सख्त टिप्पणी की है और 24 सितंबर 2019 के नोटिफिकेशन को निरस्त कर दिया, कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए फिल्म पुष्पा का उदाहरण देते हुए कहा-  जिस तरह से तस्कर, विधायक और अफसर मिलकर सिंडिकेट चलाते हैं मध्य प्रदेश में भी वही स्थिति है

पेड़ों की कटाई से जुड़े मामले पर सुनवाई करते हुए एमपी हाई कोर्ट जबलपुर की लार्जर बेंच ने 53 प्रजातियों के पेड़ों की कटाई और परिवहन के लिए सरकार द्वारा दी  गई छूट को निरस्त कर दिया , चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत,जस्टिस एस ए धर्माधिकारी और जस्टिस विवेक जैन की लार्जर बेंच ने अपने आदेश में कहा है कि 2015 में जारी विवादित अधिसूचना और 2017 में किए गए संशोधन वन अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत है,  इसके अलावा ये भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 48-ए का उल्लंघन करते हैं

सभी विभागों की वेबसाइटों पर फैसले के प्रकाशन के निर्देश 

हाई कोर्ट की लार्जर बेंच ने अपने अहम आदेश में कहा कि एक जलाशय दस कुएं के बराबर है, दस जलाशय एक पुत्र के बराबर है और दस पुत्र एक पेड़ के बराबर है,  बेंच ने अपने आदेश में कहा कि 10 दिनों की अवधि छूट प्राप्त प्रजातियों के वन उपज और लकड़ी के संबंध में ट्रांजिट पास के लिए अनिर्वाय रूप से आवेदन करें, ट्रांजिट पास के लिए आवेदन करने वाले व्यक्तियों पर आगामी 30 दिनों तक कोई बलपूर्वक कार्रवाई नहीं की जाए, इस फैसले के प्रभावी हिस्सों का प्रकाशन राज्य के सभी संबंधित विभागों की आधिकारिक वेबसाइटों के होमपेज पर किए जाएंगे इस आदेश के प्रचार प्रसार की व्यक्तिगत जिम्मेदारी संबंधित विभागों के प्रमुख सचिव की होगी।

 2 लोगों ने दायर की थी याचिका 

आपको बता दें,  जबलपुर के गढ़ा निवासी विवेक कुमार शर्मा और एक अन्य की तरफ से दायर दो अलग-अलग याचिका में कहा गया था कि प्रदेश सरकार ने सितम्बर 2015 में जारी अधिसूचना के माध्यम से वृक्षों की 53 प्रजातियों को हटाने के अलावा मध्य प्रदेश परिवहन (वनोपज) नियम, 2000 के नियम 4(2) का प्रावधान भी हटा दिया गया है जिसके कारण निजी भूमि पर स्थित वृक्षों को काटने या परिवहन करने के लिए कोई अनुमति प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है, याचिकाकर्ताओं ने चिंता जताते हुए कहा कि ऐसे तो लोगों द्वारा अधिक वृक्षों को काटने से पर्यावरण पर दुष्प्रभाव पड़ेगा, पर्यावरण संतुलन बिगड़ने से मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

फैसले में लार्जर बेंच ने पुष्पा फिल्म का किया जिक्र

लार्जर बेंच ने अपना फैसला सुनाते हुए पुष्पा फिल्म का उदाहरण दिया ,  बेंच ने कहा कि “फिल्म पुष्पा में व्यापारियों और सिंडिकेट को उजागर किया है, जो जंगलों में लाल चंदन के अवैध परिवहन, व्यापार और बिक्री में लगे हुए हैं, तस्करों और व्यापारियों का सिंडिकेट इतना प्रभाव और दबदबा बनाने लगता है कि पुलिस ,वन विभाग, नीति निर्माताओं और अंततः विधायकों तक शासन का कोई भी हिस्सा अछूता नहीं रह जाता, यह दर्शाता है कि कैसे वन उपज के अवैध व्यापार का परिवहन कर माफिया घने जंगलों में घुस सकता है और राज्य मशीनरी के साथ मिलीभगत करके जंगल की प्राकृतिक संपदा को लूट सकता है। कार्यपालिका वन उपज के ऐसे विक्रेताओं के प्रभाव और दबदबे के आगे झुक जाती है, कोर्ट ने कहा मध्य प्रदेश में भी ऐसी ही स्थिति है।

जबलपुर से संदीप कुमार की रिपोर्ट 


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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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