तेंदू पत्ता तोड़ने और बेचने पर आदिवासियों को हाई कोर्ट से राहत, वन विभाग के आदेश किया स्थगित

Gaurav Sharma
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जबलपुर हाईकोर्ट

जबलपुर, संदीप कुमार। तेंदूपत्तातोड़ने और बेचने वाले आदिवासियों के लिए आज हाईकोर्ट की तरफ से राहत भरी खबर आई है। बता दें कुंडम तहसील के लाल सिंह टेकाम की ओर से दायर की गई याचिका पर हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए आदिवासियों के तेंदूपत्ता तोड़ने और बेचने पर लगी रोक के आदेश को स्थगित कर दिया है। साथ ही हाईकोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार से जवाब तलब भी किया है।

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कुंडम तहसील निवासी लाल सिंह टेकाम की ओर से दायर की गई याचिका पर अधिवक्ता पराग तिवारी ने हाई कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए जानकारी दी कि केंद्र सरकार द्वारा लाए गए 2006 के अधिनियम के तहत आदिवासी समुदाय के लोगों को जंगल से तेंदूपत्ता तोड़ने व बेचने का अधिकार प्राप्त है क्यूंकि यह इनके जीवनयापन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। लेकिन कुंडम वन परीक्षेत्र के अधिकारियों ने बीते 11 मई 2021 को आनन-फानन में एक आदेश जारी कर आदिवासियों द्वारा तेंदूपत्ता तोड़ने और बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया था।

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आदेश में वन विभाग ने कहा कि “अब तेंदू पत्ता तोड़ने व विक्रय का अधिकार सरकारी एजेंसियों को ही होगा”। जिसके बाद यह मामला हाईकोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता पराग तिवारी ने हाई कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार के जिस अधिनियम के तहत यह रोक लगाई गई है वह 1964 का है, जबकि केंद्र सरकार ने 2006 के अधिनियम के तहत आदिवासी समुदाय को तेंदूपत्ता तोड़ने और बेचने की अनुमति दी गई है।

फिलहाल जस्टिस शील नागू की सिंगल बेंच ने इस पूरे मामले की सुनवाई करते हुए न केवल आदेश आदिवासी समुदाय के हित में दिया है बल्कि राज्य सरकार व अन्य से भी जवाब मांगा है।

 


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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