जबलपुर| आज हम आपको एक ऐसी माँ से मिलाते है जिसने की अपने बेटे का भविष्य संवारने के लिए उतर आई सड़क पर और झाड़ू-बर्तन छोड़कर थाम लिया ऑटो का हैंडल| सुबह से शाम तक ऑटो चलाने के बाद फिर अपने बेटे को अच्छी तालीम देना बस यही है इस माँ की जिंदगी…आप भी मिलाए इस माँ से…….ये लगी ऑटो में चाबी और स्टार्ट हो गया मीना का ऑटो…आइए कहाँ चलना है आपको….जी हाँ जबलपुर के सिंघी कैम्प में रहने वाली मीना ने खुद को अपने पैरों में खड़ा करने के लिए थामा है हाथों में ऑटो का हैंडल…अपने आपको किसी के सामने लाचार साबित न करने और अपने बेटे को इंजीनियर बनाने का सपना देखते हुए मीना ने ऑटो चलाने की ठानी है।
मीना की कहानी कुछ इस तरह की है कि कुछ साल पहले दमोह में मीना की शादी हुई शादी के बाद से लगातार उसके साथ मारपीट होने लगी। अपने ऊपर जुल्म सहते सहते इस बीच मीना ने एक लड़के को जन्म दिया बावजूद इसके मीना के साथ मारपीट होना बंद नही हुआ इस सबको देखते हुए मीना अपने माँ-बाप के पास आकर रहने लगी।किसी पर बोझ बनना मीना को गवारा नही था। लिहाजा मीना ने एक ऑटो फाइनैंस करवाया और सभी लाज शर्म को छोड़कर उतर आई सड़को पर…….मीना ज्यादातर रेल्वे स्टेशन में रहकर ही अपना काम करती है कई बार एक लड़की होने के चलते उसे सवारी मिलने में दिक्कत भी आती है।ऐसे समय मे उसके साथी ऑटो चालक मीना का साथ देते है।साथ में ऑटो चलाने वाले चालको की माने तो उनका कहना है कि मीना हमारी छोटी बहन जैसी है और उसकी मदद करना न सिर्फ हमारा फर्ज है बल्कि कर्तव्य भी बनता है कि एक लड़की जो कि अपने पैरों में खड़े होने के लिए सड़कों पर उतरी है हम उसकी मदद करे……जबलपुर रेल्वे स्टेशन से बाहर निकलने वाले यात्री भी सहसा मीना को देखकर दंग रह जाते है।कई लोग तो मीना को जबलपुर संस्कारधानी की शान कहते है।लोगो का मानना है कि मीना आज उन लड़कियों को लिए प्रेरणा है जो कि घर मे रहकर अपने ऊपर हर जुल्म सितम सहती है।मीना ने करीब एक साल पहले ये ऑटो फाइनैंस करवाया था और दिन भर में मीना करीब चार सौ से पाँच सौ रु कमा लेती है इसमें से कुछ पैसे मीना ऑटो की क़िस्त के लिए रख लेती है।जबकि बाकी के पैसों से वो अपना घर और बच्चे की तालीम में खर्च करती है।बहरहाल जिस तरह से मीना अपने पैरों में खड़े होकर काम कर रही है आज यही मीना दूसरों महिलाओ के लिए भी प्रेरणा बनी हुई है।