झाबुआ बिजली विभाग की लापरवाही, लोगों को किया अंधेरे में रहने पर मजबूर

Gaurav Sharma
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झाबुआ, विजय शर्मा। झाबुआ बिजली विभाग की बड़ी लापरवाही सामने आई है। जहां झाबुआ बिजली विभाग के कर्मचारियों द्वारा लाइट के मेन तारों को काट दिया या जॉइंट को खोल दिया जाता है, जिससे कि वहां के रहवासियों की घर की लाइट बंद हो जाती है। तार काटे जाने की एवं लाइट जाने की पूर्व में किसी भी प्रकार की कोई सूचना एमपीईबी विभाग द्वारा नहीं दी गई।

रहवासियों द्वारा नियमित रूप से अपना बिल भरा जाता हैं ऐसे में उनकी लाइट कट जाने पर वो विद्युत विभाग पहुंचे। जहां उनका कहना है कि बिजली विभाग के कर्मचारियों ने हम से केबल के एवज में पैसे मांगे हैं। मामला झाबुआ के वार्ड नंबर 17 का है। यहां के रहवासियों को 26 से 30 घंटे बिना बिजली के रहना पड़ा, जिसके चलते उन्हें खासी परेशानियों का सामना करना पड़ा। बिजली की समस्या के चलते रहवासियों ने अपना रुख बिजली विभाग के दफ्तर की ओर किया, जहां मीडिया कर्मी भी पहुंचे।

वही झाबुआ बिजली विभाग के उपयंत्री उमाशंकर पाटीदार का कहना है कि उनकी लाइट को तुरंत दुरुस्त किया जाएगा और किसी फाल्ट के चलते वहां लाइट बंद हो चुकी थी। एक बड़ा प्रश्न उठता है कि ऐसा कौन सा फाल्ट है जिसके कारण खंबे की मेन लाइनों के चारों तार निकल जाते हैं जो कि संदेह की स्थिति पैदा करता है। वहीं इस बस्ती में रहने वाले सुबह से गर्मी और मच्छरों से परेशान हैं और साथ ही उम्र दराज बुजुर्गों और छोटे बच्चे वाले इन घरों में बिजली ना होने की वजह से खाना बनाना एवं बच्चों की देखरेख में खासी समस्याएं आ रही है।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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