खंडवा, सुशील विधाणी। मध्यप्रदेश के सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया ने अशोकनगर जिले में एक कार्यक्रम सभा में कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष और मंत्री अरुण यादव को दो कौड़ी का नेता बता दिया था। उनकी इस टिप्पणी से नाराज कांग्रेसियों ने खंडवा के गांधी भवन में नारेबाजी करते हुए सहकारिता मंत्री का पेट्रोल पंप के बीच चौराहे पर पुतला फूंका। साथ ही सहकारिता मंत्री के खिलाफ जमकर नारेबाजी भी की। इसके साथ ही उनके पुतले का दहन किया। इसके बाद समस्त कांग्रेसी गांधी भवन पर एकत्रित होकर वाहनों से कलेक्टर कार्यालय पहुंचे, जहां जमकर नेता के खिलाफ नारेबाजी करते हुए ज्ञापन सौंपा।
वहीं कांग्रेसियों के आक्रोश को देखते हुए पुलिस ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया। इस दौरान शहर कांग्रेस, ग्रामीण कांग्रेस, यूथ कांग्रेस के कांग्रेसियों ने नारेबाजी करते हुए मंत्री भदौरिया से माफी मांगने और अपनी टिप्पणी वापस लेने की मांग की। इस दौरान कांग्रेसियों ने कहा कि अरुण यादव समाज के वरिष्ठ नेता हैं, उनपर की गई टिप्पणी उनका ही नहीं बल्कि संपूर्ण पूरे कांग्रेसियों का अपमान है। सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया के अमर्यादित बयान की हम निंदा करते है। उन्होंने कहा कि सहकारिता मंत्री ने पद की गरिमा का भी ध्यान नहीं रखा। उन्होंने जिस तरह की भाषा का उपयोग किया है उससे उनके संस्कार सार्वजनिक हो गए। प्रदेश में एक नई तरह की राजनीति की शुरुआत हो गई है। मंत्री भदौरिया ने जिस तरह अमर्यादित शब्दों का प्रयोग किया है उससे प्रदेश का राजनैतिक वातावरण न केवल दूषित हुआ है, एक गंदी राजनीति की भी शुरुआत हो चुकी है। सरकारें और पद आते-जाते रहते हैं किंतु आपने मंत्री पद की गरिमा को भूलकर संस्कारों को सार्वजनिक कर दिया है।
पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।
इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।