खंडवा, सुशील विधानी | देवउठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi) के पावन पर्व पर शहर के मंदिरों एवं घरों मेंं तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) कर भगवान विष्णु को जगाया गया| देवउठनी एकादशी के साथ ही सभी प्रकार के शुभ कार्य शुरू हो गए। सभी स्थानों पर धूमधाम से तुलसी से भगवान विष्णु का विवाह कराया गया एवं जमकर आतिशबाजी की गई। शहर में देवउठनी एकादशी पर्व के अवसर पर जगह-जगह गन्नों की दुकानों पर खरीददारी हेतु भीड़ उमड़ी। इस अवसर पर गन्नों की जमकर बिक्री हुई पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष गन्नों की कीमतों में भी बढ़ोतरी देखी गई।
उपवास रख किया तुलसी शालिग्राम का विवाह
ऐसी मान्यता है कि आषाढ़ शुक्ल की देवशयनी एकादशी को भगवान विष्णु सोने के लिए चले जाते हैं और देवउठनी एकादशी तक शयन में होते हैं। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य आमतौर पर सम्पन्न नहीं कराया जाता है। देवोत्थान एकादशी का महत्व सबसे अधिक है। स्वर्ग में भगवान विष्णु के साथ लक्ष्मीजी का जो महत्व है। वहीं धरती पर तुलसी का महत्व है। इसी के चलते भगवान को जो व्यक्ति तुलसी अर्पित करता है उससे वह अति प्रसन्न होते हैं। आज के दिन लाखों की संख्या में लोगों ने व्रत रख तुलसी विवाह संपन्न कराया।
विधि विधान से हुआ पूजन
घरों में लोगों ने तुलसी रखने के स्थान को साफ कर, गोबर से उस स्थान को लिपा और अल्पना बनायी। गमले के चारों ओर ईख (गन्ने)का मंडप बनाकर उसके ऊपर ओढनी या सुहाग की प्रतीक चुनरी ओढ़ायी, गमले को साड़ी पहनाकर सुहाग के सामान से उनका श्रृंगार किया गया। श्री गणेश सहित सभी देवी-देवताओं का तथा श्री शालिग्रामजी का विधिवत पूजन किया इसके बाद भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसीजी की सात परिक्रमा करायी और आरती कर तुलसी जी का विवाह संपन्न कराया। तुलसी विवाह में विशेष रूप से चना भाजी, आंवला, पोखर, बेर, सिंघाड़ा का विशेष महत्व है, कई घरों में तुलसीजी को दहेज भी दिया जाता है जो बाद में पंडित को दान किया जाता है। समाजसेवी सुनील जैन ने बताया कि रामगंज स्थित प्राचीन जूना राम मंदिर में प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी देवउठनी एकादशी के दिन पंडित आदित्य व्यास व नागेश व्यास के मंत्राच्चार के साथ देवी देवताओं की उपस्थिति में तुलसी विवाह संपन्न हुआ। इस अवसर पर श्रद्धालुओं ने भी देवी देवताओं की पूजा अर्चना तुलसी की पूजा कर परिक्रमा की। वहीं बजरंग चौक स्थित मुनिबाबा मंदिर में ग्यारस के दिन प्रात: 6.30 बजे भगवान का अभिषेक व विशेष श्रृंगार के साथ पूजा अर्चना की गई। दोपहर में तुलसी अर्चना के साथ महिलाओं ने भजनों की प्रस्तुति दी।
जमकर की गई आतिशबाजी
देवउठनी एकादशी को छोटी दिवाली भी कहा जाता है सो बच्चों एवं युवाओं ने पटाखे फोड़ने का भी खूब आनंद लिया, विवाह संपन्न होने के बाद आतिशाबाजियों का जो सिलसिला शुरू हुआ वह देर रात तक चलता रहा।