खण्डवा। मध्यप्रदेश की खंडवा विधानसभा में निर्दलीयों का कई बार मुख्य दलों के प्रत्याशियों के समीकरण बिगाड़ने के इतिहास के साथ इस बार भी निर्दलीय मुसीबत बन सकते हैं। सन 1952 से 2013 तक खंडवा विधानसभा क्षेत्र में एक उपचुनाव सहित कुल 15 चुनावों में अब तक कुल 36 निर्दलीय प्रत्यशियों ने अपनी किस्मत आजमाई। हालांकि, कोई अपनी जमानत नहीं बचा पाया। खण्डवा जिले की चार विधानसभा क्षेत्रों में जहां दो सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के बीच के सीधा मुकाबला है, वहीं दो क्षेत्रों में दोनों ही पार्टी के बागियों ने उनकी चिंता बढ़ा दी है।
खण्डवा सीट पर भाजपा तो पंधाना में कांग्रेस को अपनी ही बागी से पार पाना मुश्किल हो रहा है। हरसूद और मान्धाता में भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला सीधा है, इसलिए वहां स्थिति बहुत कुछ साफ है। मध्यप्रदेश शासन के कैबिनेट मंत्री विजय शाह हरसूद से साल 1990 से अब तक लगातार छह बार विधायक चुने जाने के बाद सातवें चुनाव के प्रति भी आश्वस्त है, लेकिन खण्डवा से लगातार दो चुनाव जीतने वाले देवेन्द्र वर्मा की हैट्रिक में उनकी ही पार्टी के बागी ने पेंच फंसा दिया है। खण्डवा जिले में चार विधानसभा क्षेत्र है जिसमे पंधाना और हरसूद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है, तो खण्डवा अनुसूचित जाति के लिए। यहां सिर्फ मान्धाता ही एक मात्र सीट है जो सामान्य वर्ग के लिए है इसलिए तमाम बड़े नेताओं के दांव यही लगे रहते है।
हरसूद विधानसभा क्षेत्र से मध्यप्रदेश सरकार में लम्बे समय से मंत्री रहे विजय शाह को भाजपा ने अपना प्रत्याशी बनाया है जो यहां से साल 1990 से लगातार अपनी जीत दर्ज करते आये है। यहां से कांग्रेस ने सुखराम साल्वे को अपना प्रत्याशी बनाया है, जो मूल रूप से भाजपा के ही कार्यकर्ता रहे हैं। वे यहां के कोरकू बहुल समुदाय से आते हैं जबकि विजय शाह गोंड आदिवासी समाज से हैं। कांग्रेस को यह उम्मीद है कि जातिगत आधार पर वह कोरकू समाज को एकजुट कर पाई तो वह भाजपा के मजबूत प्रत्याशी के सामने कोई चुनौती खड़ी कर सकती है। इ