SAHARA का एक और बड़ा फर्जीवाड़ा, बोगस कंपनियां बनाकर लोगों से धोखाधड़ी

Pooja Khodani
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मंदसौर डेस्क रिपोर्ट। निवेशकों के साथ धोखाधड़ी कर देश भर में अरबों-खरबों रुपए का फर्जीवाड़ा करने वाली सहारा इंडिया कंपनी(Sahara India Company) का एक और बड़ा मामला सामने आया है। मंदसौर के कलेक्टर गौतम सिंह (Mandsaur Collector Gautam Singh) ने इस मामले में कठोर कार्रवाई करते हुए कंपनी की संपत्ति कुर्क करने के आदेश दिए हैं।

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निवेशकों के धन को दुगना करने का तिलिस्म दिखाने वाली सहारा इंडिया कंपनी (Sahara India) के एक के बाद एक करके घोटाले सामने आ रहे हैं। ताजा मामला मंदसौर जिले का है जहां पुलिस ने नरेंद्र धनोतिया की शिकायत पर सहारा इंडिया की क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी (Sahara India Credit Cooperative Society)पर निवेशकों के साथ धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया था। धनोतिया द्वारा दिए गए साक्ष्यों के आधार पर जब पुलिस ने कार्यवाही आगे बढ़ाई तो सामने आया कि पूरे मंदसौर जिले में लगभग 16000 से ज्यादा निवेशकों की 60 करोङ रू से ज्यादा की राशि परिपक्वता अवधि पूरी होने के बाद भी सहारा क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी ने वापस नहीं लौटाई है।

इतना ही नहीं, सहारा कंपनी ने मंदसौर जिले में आवासीय कॉलोनी बनाने के नाम पर जो जमीन बोगस कंपनियों के नाम पर खरीदी थी उसे भी बेच दिया गया लेकिन उससे भी पैसों का कोई भुगतान निवेशकों को नहीं किया गया। सहारा हाउसिंग ने शैलेंद्र दुबे नाम के भोपाल के रहने वाले व्यक्ति को अपना मुख्तारनामा दिया था जिसने मंदसौर के 8 लोगों को यह जमीन बेच दी और कंपनियों के नाम पर भुगतान किया जिनका कोई अता पता ही नहीं है। कस्बा मोहम्मदपुरा के अरनिया भट्टी गांव में स्थित इस जमीन को दस अलग-अलग कंपनियों के नाम से खरीदा गया था जिनके ना तो कोई पते मिले और ना ही कोई जानकारी।

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पुलिस (Mandsaur Police) की जांच में इस बात का खुलासा हुआ कि सहारा ने इस पूरे मामले में बड़ी धोखाधड़ी बोगस कंपनियां बनाकर भी की है और मध्य प्रदेश निक्षेक्षकों के हितों का संरक्षण अधिनियम 2000 की धाराओं का उल्लंघन किया है। इस पूरे मामले में कलेक्टर ने साफ लिखा कि 60 करोड रुपए की राशि जो कंपनी ने गबन की है उसकी वापसी की संभावनाएं नहीं लगती। इसलिए कंपनी के द्वारा बेची गई जमीन को कुर्क करने के आदेश पारित किए गए हैं। पुलिस पूरे मामले में शैलेंद्र दुबे को तलाश रही है जिसके माध्यम से बड़े खुलासे हो सकते हैं।


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खबर वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है। बाकी सब विज्ञापन है। मकसद तय करना दम की बात है। मायने यह रखता है कि हम क्या छापते हैं और क्या नहीं छापते। "कलम भी हूँ और कलमकार भी हूँ। खबरों के छपने का आधार भी हूँ।। मैं इस व्यवस्था की भागीदार भी हूँ। इसे बदलने की एक तलबगार भी हूँ।। दिवानी ही नहीं हूँ, दिमागदार भी हूँ। झूठे पर प्रहार, सच्चे की यार भी हूं।।" (पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर)

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