मुरैना, संजय दीक्षित। बेटी द्वारा पिता को मुखाग्नि देने, उनकी अर्थी को कंधा देने जैसी ख़बरें पिछले कुछ वर्षों से सामने आ रही हैं। आमतौर पर अभी तक ऐसी ख़बरें शहरों से सामने आती रही हैं लेकिन यदि ऐसी खबर ग्रामीण क्षेत्र से आये तो कहा जा सकता है कि सामाजिक परिवर्तन अब धीरे धीरे गति पकड़ रहा है। अब बेटी को भी उन सभी अधिकार और परम्पराओं का हिस्सा माना जाने लगा है जिनपर केवल बेटों का हक़ होता है।
ताजा मामला मुरैना का है। ठेठ ग्रामीण परिवेश में रचा बसा मुरैना चम्बल अंचल का प्रमुख शहर है, यहाँ के लोग परम्पराओं को निभाने में अधिक विश्वास करते हैं या यूँ कहें कि काफी हद तक रूढ़िवादी होते हैं, यहाँ आज भी बेटी के जन्म पर बेटे जैसा जश्न नहीं मनाते क्योंकि इन्हें वंश को बढ़ाने के लिए बेटा चाहिए, बेटी नहीं, लेकिन इसी मुरैना ने समाज की बदलती सोच का ऐसा उदाहरण दिया है जिसकी सब जगह चर्चा हो रही है।
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दरअसल मुरैना की एक बेटी ने अपने पिता को मुखाग्नि देकर मिसाल पेश की है। मुरैना शहर के सांवरिया बोहरे वाली गली गणेशपुरा में रहने वाले कृष्ण कुमार उपाध्याय लंबे समय से बीमार चल रहे थे, उनके कोई संतान नहीं थी, उन्होंने एक बेटी को गोद ले लिया, बेटी भी होनहार थी, उसने अपने पिता का पूरा ख्याल रखा और उनकी खूब देखभाल की, पिता कृष्ण कुमार को अपनी बेटी पर बड़ा ही नाज था लेकिन कुछ दिनों पहले उन को लकवा मार गया जिससे उनके तबीयत बिगड़ने लगी।
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कृष्ण कुमार को उपचार के लिए दिल्ली, जयपुर और ग्वालियर तक भी दिखाने के लिए ले गए, यहाँ भी बेटी कोमल ने उनकी खूब सेवा की। लेकिन इलाज से बहुत अधिक लाभ नहीं हुआ और कृष्ण कुमार ने कल अंतिम सांस ली। चूँकि घर में कोई बेटा नहीं था तो बातें होने लगीं कि कौन करेगा, कुछ लोगों ने बेटी कोमल से अंतिम संस्कार करवाने की बात की तो कुछ बुजुर्गों ने ऐतराज जताया लेकिन फिर लोगों की समझाइश के बाद वे मान गए और बेटी कोमल ने पिता का अंतिम संस्कार करने का फर्ज अदा किया।
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कोमल एक बेटे की तरह पिता की अर्थी के साथ मटकी लेकर श्मशान घाट तक पहुंची और वहां जाकर उसने मुखाग्नि दी। अंतिम संस्कार के समय एक सैकड़ा से अधिक लोग श्मशान में मौजूद थे, परम्पराओं को मानने वाले ये सभी लोग इस सामाजिक परिवर्तन को स्वीकार करते हुए बेटी कोमल की सिर्फ तारीफ कर रहे थे।