बेटी ने पिता को मुखाग्नि देकर पेश की मिसाल, परम्पराओं को मानने वालों ने कही बड़ी बात

Atul Saxena
Published on -

मुरैना, संजय दीक्षित। बेटी द्वारा पिता को मुखाग्नि देने, उनकी अर्थी को कंधा देने जैसी ख़बरें पिछले कुछ वर्षों से सामने आ रही हैं। आमतौर पर अभी तक ऐसी ख़बरें शहरों से सामने आती रही हैं लेकिन यदि ऐसी खबर ग्रामीण क्षेत्र से आये तो कहा जा सकता है कि सामाजिक परिवर्तन अब धीरे धीरे गति पकड़ रहा है। अब बेटी को भी उन सभी अधिकार और परम्पराओं का हिस्सा माना जाने लगा है जिनपर केवल बेटों का हक़ होता है।

ताजा मामला मुरैना का है। ठेठ ग्रामीण परिवेश में रचा बसा मुरैना चम्बल अंचल का प्रमुख शहर है, यहाँ के लोग परम्पराओं को निभाने में अधिक विश्वास करते हैं या यूँ कहें कि काफी हद तक रूढ़िवादी होते हैं, यहाँ आज भी बेटी के जन्म पर बेटे जैसा जश्न नहीं मनाते क्योंकि इन्हें वंश को बढ़ाने के लिए बेटा चाहिए, बेटी नहीं, लेकिन इसी मुरैना ने समाज की बदलती सोच का ऐसा उदाहरण दिया है जिसकी सब जगह चर्चा हो रही है।

Continue Reading

About Author
Atul Saxena

Atul Saxena

पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ.... पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....