डकैतों के सामूहिक आत्मसर्पण की मनाई स्वर्ण जयंती, सरेंडर बागियों ने सुनाई आपबीती

Amit Sengar
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मुरैना,संजय दीक्षित। मुरैना (Morena) जिले के जोरा (Joura) में डकैतों (dacoits) के सामूहिक आत्मसर्पण की मनाई गई स्वर्ण जयंती, जिसमें सरेंडर हुए बागियों ने आम जनता के सामने आपबीती सुनाई बता दें कि 14 अप्रैल 1972 को मुरैना जिले के जौरा कस्बा स्थित गांधी सेवा आश्रम में 654 डकैतों ने गांधीजी की तस्वीर के सामने हथियार डालकर सरेंडर किया था। बागियों के दुनिया के सबसे बड़े आत्मसर्मण को आज 50 साल पूरे हुए हैं। इस उपलक्ष्य में जौरा के आश्रम में स्वर्ण जयंती समारोह का आयोजन किया गया है।

डकैतों के सामूहिक आत्मसर्पण की मनाई स्वर्ण जयंती, सरेंडर बागियों ने सुनाई आपबीती

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इस आयोजन में 20 से ज्यादा आत्मसमर्पित डकैतों का सम्मान केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किया। इस दौरान सरेंडर डकैतों ने अपनी आपबीती भी सुनाइ। इस आयोजन मैं देश के देश के 30 राज्यों से सैकड़ों लोग शामिल हुए। गांधीवादी विचारक डा. एसएन सुब्बाराव, लोकनायक जयप्रकाश और विनोवा भावे ने उस समय के कुख्यात डकैत माधौसिंह के साथ मिलकर बीहड़ों में खौफ का पर्याय बन चुके डकैतों को हथियार डालने के लिए मनाया और इसके बाद दुनिया का सबसे बड़ा दस्यु आत्मसर्पण सम्पन हुआ था।

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राजस्थान के धौलपुर जिले की राजाखेड़ा तहसील के बसई घियाराम गांव निवासी 77 साल की पूर्व दस्यु सुंदरी कपूरी बाई राजपूत भी जौरा के गांधी सेवा आश्रम में अपने दो बेटों रविंद्र व सुग्रीव सिंह के साथ आई। कपूरी बाई ने बताया कि गांव के दबंगों की प्रताड़ना से तंग आकर साल 1968 में उसके पति खरग सिंह, देवर छोटेलाल के साथ वह बीहड़ों में कूद गई। पति खरग सिंह ने अपनी गैंग बनाई, जिसमे 22 सदस्य थे। चार साल में कई दर्जन अपहरण व कई हत्याएं कीं। 12 अप्रैल 1972 को राजस्थान के तालाबशाही में पति, देवर के साथ हथियार डाल दिए। चार साल जेल में कैद रहे।


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मुझे अपने आप पर गर्व है कि में एक पत्रकार हूँ। क्योंकि पत्रकार होना अपने आप में कलाकार, चिंतक, लेखक या जन-हित में काम करने वाले वकील जैसा होता है। पत्रकार कोई कारोबारी, व्यापारी या राजनेता नहीं होता है वह व्यापक जनता की भलाई के सरोकारों से संचालित होता है।वहीं हेनरी ल्यूस ने कहा है कि “मैं जर्नलिस्ट बना ताकि दुनिया के दिल के अधिक करीब रहूं।”

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