मुरैना,नितेंद्र शर्मा। ग्वालियर-चंबल इलाके में शैव परंपरा के अनेक प्राचीन मंदिर हैं इन्हीं में से एक है धूमेश्वर महादेव मंदिर (dhumeshwar temple), डबरा से लगभग 39 किलोमीटर दूर भितरवार के करीब पार्वती और सिंध नदी के संगम स्थल पर स्थित है माना जाता है कि इस अति प्राचीन मंदिर का प्राकट्य इस संगम में से हुआ था कहा जाता है कि इस मंदिर का इतिहास काफी पुराना है।
बता दें कि मंदिर का निर्माण ओरछा नरेश वीर सिंह जूदेव ने एक रात में करवाया था, सिंध नदी का जल झरने के रूप में काफी ऊपर से गिरता है, जिससे धूये की भ्रांति जैसा उत्पन्न होता है। इसलिए मंदिर का नाम धूमेश्वर पड़ा इस मंदिर के महामंडलेश्वर श्री श्री 1008 अनिरुद्ध वन महाराज ने हिंदुत्व को आगे बढ़ाने के लिए और ईश्वर में लोगों की श्रद्धा को दृढ़ करने के लिए धूमेश्वर धाम से मथुरा जो कि भगवान श्री कृष्ण की नगरी कहलाई जाती है, वहां तक दुग्ध धारा के संग पैदल निकल पड़े हैं, धूमेश्वर धाम से मथुरा गोवर्धन की दूरी लगभग ढाई सौ किलोमीटर के आसपास की है।
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ओम नमः शिवाय के जयकारों के संग महंत जी के संग हजारों भक्तों श्रद्धालु जुड़ते जा रहे हैं, जब हमने महंत जी से पूछा कि दुग्ध धारा के संग ही क्यों जलधारा के संग क्यों नहीं तो महंत जी बोले की एक रात स्वप्न में उन्हें आदेश मिला कि दुग्ध धारा के संग अपनी पदयात्रा करो तो वह निकल पड़े।
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महंत अनिरुद्ध महाराज ने भारतवर्ष के सभी सनातनीयों से कहा कि भ्रमित ना हो भारतवर्ष में कई धर्म चल उठे हैं परंतु जो वेदों में निहित सबसे पुराना धर्म हिंदू धर्म ही है उसी उसी का अनुसरण करें आडंबरों को छोड़कर वेदों के अनुसार ही कार्य पूजा-पाठ करें। महंत जी ने कहा कि धूमेश्वर महादेव मंदिर में भी 24 घंटे बिना रुके ओम नमः शिवाय का जप चल रहा है और यह निरंतर जारी रहेगा।