MP Tourism: उज्जैन (Ujjain) में स्थित बाबा महाकालेश्वर का मंदिर (Mahakaleshwar Mandir) पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। 12 ज्योतिर्लिंगों में यह एकमात्र ऐसा शिवलिंग है जो दक्षिण मुखी है। यहां भगवान भोलेनाथ कालों के काल महाकाल के रूप में अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। इस मंदिर से कई प्राचीन परंपराएं और रहस्य जुड़े हुए हैं। जिनके बारे में हम आपको आज जानकारी देते हैं। अवंतिका नगरी के राजा विक्रमादित्य बाबा महाकाल के अनन्य भक्त थे और भोलेनाथ के आशीर्वाद से ही उन्होंने 132 साल तक यहां पर शासन किया। इस मंदिर की सटीक जानकारी मिलना मुश्किल है लेकिन यह करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र है।
MP Tourism में करें महाकाल का दीदार
महाकालेश्वर मंदिर का इतिहास बहुत ही पुराना और रोचक है। मुगलों और ब्रिटिश हुकूमत का राज रहने के बावजूद भी इस मंदिर में कभी भी अपनी परंपरा को नहीं खोया। सनातन धर्म को हमेशा ऊंचा बनाए रखने के लिए लोगों ने तरह-तरह की कोशिश कर इस ज्योतिर्लिंग की सुरक्षा के प्रयास किए। दशकों के बाद आज मंदिर एक अलग ही स्वरूप में यहां आने वाले भक्तों को दिखाई देता है। अब तो महाकाल लोक के लोकार्पण से यहां का वैभव और भी बढ़ गया है। इस मंदिर के इतिहास की जानकारी आपको हैरान कर देगी।
500 साल कुएं में रहा शिवलिंग
पौराणिक कथाओं के मुताबिक 1235 में दिल्ली के सुल्तान रहे इल्तुतमिश ने मंदिर को पूरी तरीके से ध्वस्त कर दिया था। ऐसे में गर्भगृह में विराजित स्वयंभू ज्योतिर्लिंग को बचाने के लिए इसे 550 सालों तक पास में बने हुए एक कुएं में रखा गया। औरंगजेब ने मंदिरों के टूटे-फूटे अवशेषों से यहां मस्जिद का निर्माण करवा दिया। तब भी जीर्ण शीर्ण अवस्था में मौजूद मंदिर में ही भगवान की पूजा की जाती रही। 22 नवंबर 1728 में जब राणोजी राव सिंधिया मुगलों को परास्त कर अवंतिका पहुंचे तो उन्होंने यहां बनी मस्जिद को गिराया और 1732 में फिर से मंदिर का निर्माण कर ज्योतिर्लिंग की स्थापना की गई। कोटितीर्थ कुंड से उन्होंने ही महाकाल ज्योतिर्लिंग को बाहर निकालकर मंदिर का निर्माण करवाया और 500 साल बाद फिर से सिंहस्थ का आयोजन शुरू किया गया।
राजा विक्रमादित्य ने किया पुनर्निर्माण
महाकवि कालिदास ने अपने मेघदूत ग्रंथ में महाकाल मंदिर में होने वाली संध्या आरती का जिक्र किया है। इसमें भगवान महाकाल की कल्पना भी की है। जानकारियों के मुताबिक विक्रमादित्य ने महाकालेश्वर मंदिर का विस्तार करवाया था
यहां पर उन्होंने एक धर्म सभा बनवाई थी जहां से वो न्याय करते थे। उन्होंने यहां पर बहुत सी प्रतिमाओं का निर्माण करवाया। बाण भट्ट के सातवीं शताब्दी में लिखे गए कादंबिनी काव्य में भी महाकाल मंदिर के विस्तार का वर्णन किया गया है। उस समय राजा भोज का शासन था और देश के कई मंदिरों के निर्माण के दौरान उन्होंने महाकाल मंदिर का भी पुनर्निर्माण करवाया था और शिखर को पहले से ऊंचा करवाया था।
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इन राजाओं ने किया पुनर्निर्माण में योगदान
राजस्थान के राजा जयसिंह द्वितीय ने 1280 में महाकालेश्वर के शिखर पर सोने की परत चढ़ाने के साथ कोटि तीर्थ का निर्माण भी करवाया था। 1300 ईस्वी के दौरान रणथंबोर के राजा हमीर बाबा महाकाल के दर्शन करने के लिए पहुंचे और यहां की अवस्था देख उन्होंने विस्तारीकरण का काम करवाया। 1700 में जब मेवाड़ के राजा जगत सिंह उज्जैन पहुंचे तो उन्होंने यहां पर कई तरह के निर्माण कार्य करवाएं और इस तरह से समय-समय पर मंदिर का विस्तारीकरण होता गया। आज ये मंदिर ना सिर्फ देश बल्कि दुनियाभर में प्रसिद्ध है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां भगवान महाकाल का आशीर्वाद लेने के लिए पहुंचते हैं। अनगिनत सालों का इतिहास अपने अंदर समेटे हुआ ये मंदिर अब आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण है लेकिन यहां के माहोल में भक्तों को आज भी असीम शांति की अनुभूति होती है।