वृद्धाश्रम पहुंचे कलेक्टर, बेटे की तरह साथ भोजन कर जानी समस्या, सुख दुःख की बातें की

निवाड़ी, आशीष दुबे। जीवन के अंतिम पड़ाव पर अपनों से दूर वृद्धाश्रम (old age home) में अकेला जीवन जी रहे बुजुर्गों के पास जाकर कोई अपनेपन और चाहत भरे दो शब्द बोल दे तो उनके लिए इससे बड़ी दौलत कोई हो नहीं सकती। ओरछा के वृद्धाश्रम में पहुंचकर जब निवाड़ी कलेक्टर तरुण भटनागर (Niwari Collector Tarun Bhatnagar) ने इनका हाल जाना तो इनके चेहरे पर मुस्कान और आंखों में खुशी के आंसू थे। जब डीएम ने उनके बीच बैठकर दोपहर का भोजन किया तो वृद्धों की खुशी का पार न था, कुछ देर तो उन्हें लगा कि उनके बीच कोई अफसर नहीं उनका अपना कोई परिजन है।

निवाड़ी के रामराजा वृद्धाश्रम में पहुंचे निवाड़ी कलेक्टर तरुण भटनागर को देखकर वृद्धजनों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। अपने परिवार और बच्चों से दूर अपना समय वृद्धाश्रम में बिता रहे वृद्धों का हाल जानने के लिए निवाड़ी कलेक्टर उनके बेटे के रूप में यहां पहुंचे थे। यह नजारा मार्मिक था, क्योंकि परेशानियों से घिरे यहाँ रह रहे बुजुर्ग कलेक्टर को अपना बेटा समझकर अपने सुख दुख की और अपनी समस्याएं उन्हें बता रहे थे।


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Atul Saxena

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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ.... पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....