राजगढ़ में बैंड बाजे के साथ बन्दर की अंतिम यात्रा, शामिल हुआ पूरा गाँव

Gaurav Sharma
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राजगढ़, डेस्क रिपोर्ट। मध्यप्रदेश के एक गांव से ऐसा मामला सामने आया है जहां पर बंदर की मौत पर मातम पसर पड़ा। पूरे विधि विधान के साथ बैंड बाजे की धुन पर बंदर की अंतिम यात्रा निकाली गई। बन्दर की अंतिम यात्रा में भावुक हो पूरा गाँव शामिल हुआ ।

घटना राजगढ़ जिले के खिलचीपुर तहसील के नजदीक ग्राम डालूपुरा की है जहां एक बंदर ठंड से कांपते हुए आया, ठंड से कांपते देख बन्दर को ग्रामीणों ने आग के आगे बैठा कर उसे गर्मी देने की कोशिश की, लेकिन इसके बावजूद बन्दर की तबियत बिगड़ने लगी। इसके बाद उसे खिलचीपुर अस्पताल में डाक्टर को दिखा गया, जहाँ इलाज के बाद ग्रामीण उसे गाँव वापस ले आये।वापस लाने के कुछ देर बाद ही उसकी मौत हो गई।

बन्दर की मौत को लेकर डालूपुरा गांव के ग्रामीण व महिलाएं भावुक हो गए। जैसे ही बन्दर की मृत्यु की सूचना क्षेत्रवासियों को जैसे ही लगी वे भारी संख्या में एकत्रित हुए और शव यात्रा के लिए डोल बनाया और उन्होंने धार्मिक रीति-रिवाजों के साथ बैंड बाजे सहित मृत बंदर की शव यात्रा निकाली। यात्रा में पूरे गाँव के लोग शामिल हुए। गांव की महिलाएं भी बन्दर की अंतिम यात्रा के पीछे भजन गाते हुए चल रही थी। गांव के बाहर बन्दर का अंतिम संस्कार किया गया। डालूपुरा गांव के बिरम सिंह चौहान ने बताया कि बंदर को हनुमान जी का स्वरूप माना जाता है लिहाजा हिंदू रीति रिवाज से सभी गाँव वासियों ने बन्दर की बैंड बाजे के साथ अंतिम यात्रा निकाली जिसके बाद उसका अंतिम संस्कार किया गया ।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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