गौमाता की दुर्दशा देख कराह उठेगा आपका दिल, विधायक ने फेसबुक पर बयां किया दर्द

Atul Saxena
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ग्वालियर, अतुल सक्सेना। अतिवृष्टि से जहाँ इंसान परेशान है, वहीं बेजुबानों की भी हालत ख़राब है। यहाँ हम जिस बेजुबान की बात कर रहे हैं उसे गौमाता कहा जाता है, हिन्दू धर्म से जुड़े लोगों के लिए गौमाता की सेवा ईश्वर की सेवा के बराबर मानी जाती है, लेकिन आज गौमाता दुर्दशा की शिकार है।  या तो वो सड़कों पर आवारा घूम रही हैं और पॉलीथिन खाकर अपनी जान गँवा रही है या फिर गौशाला में बंद है।

गौशाला में भी वो गौमाता खुश है जहाँ के सेवक उनकी भरपूर सेवा करते हैं लेकिन ग्वालियर में ऐसी गौशाला भी हैं जो गौमाता के लिए कैदखाना साबित हो रही हैं। गोले का मंदिर चौराहे के पास मार्क हॉस्पिटल परिसर में स्थित गौशाला के हाल भी ऐसे ही हैं। बारिश के दिनों में खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर गौमाता यहाँ बेहाल है, उसके पास ना ठीक से खाने के लिए और ना ही बैठने के लिए सूखी जगह है। तस्वीरें बताती हैं कि नगर निगम द्वारा संचालित इस गौशाला की देखरेख करने वाले अधिकारी गौमाता के लिए कितना संजीदा हैं।

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गौशाला में गौमाता की बदहाली और दुर्दशा देखकर ग्वालियर दक्षिण विधानसभा के कांग्रेस विधायक प्रवीण पाठक  ने संजीदगी के साथ अपनी फेसबुक वॉल पर गौमाता के दर्द को अपने शब्दों में बयां किया है।  विधायक प्रवीण पाठक ने आज के राजनीतिक परिदृश्य से जोड़ते हुए गौमाता की दुर्दशा को रेखांकित किया है।  विधायक प्रवीण पाठक ने लिखा –  “काश मैं भी वोटर होती, तो मेरे लिए भी कोई नेता गटर में उतरकर वहाँ से मुझे बाहर ले आता। कोई नेता कचरे के ढेर से मुझे निजात दिलाता। काश! मैं वोटबैंक होती तो नेता जी को खुश करने के लिए प्रशासन के साहेब, मेरे रहने और खाने का बेहतर प्रबंध करवाते।

गौमाता की दुर्दशा देख कराह उठेगा आपका दिल, विधायक ने फेसबुक पर बयां किया दर्द

काश! मैं वोटबैंक होती तो प्रधानमंत्री आवास की तरह, मेरे गोले के मंदिर वाले घर की कीचड़ और गंदगी को साफ करवाते। काश! मैं वोटबैंक होती तो मुझे वास्तव में माँ की तरह देखकर, मेरे कंकाल बन रहे शरीर के प्राण बचाते।  काश, मैं वोटबैंक होती तो तुम कुर्सी के लालच में ही सही पर मेरा ख्याल रखते और केवल ढोंग, ढकोसले के अलावा कम से कम एक बार तो अपनी सरकार से मेरी दुर्दशा पर सवाल उठाते ।

गौमाता की दुर्दशा देख कराह उठेगा आपका दिल, विधायक ने फेसबुक पर बयां किया दर्द

काश! मैं वोटबैंक होती तो मुझे भी मूर्ख बनाने को सही, दिखाए जाते रोटी(घास),कपड़ा(रखरखाव) और मकान(शेल्टर) के ख़्वाब! काश, मैं वोटबैंक होती तो ये प्रदेश की सरकार, मेरे नासूर बन चुके घावों को भी ठीक कराती। लेकिन यह विडंबना ही है कि मैं वोटर नही हूँ, मैं राजनीतिक पशु मात्र हूँ जिसके रहने-खाने की व्यवस्था के नाम पर सब दाम कमा रहे है और अब तो मेरा घर भी मुझसे छीनना चाह रहे हैं।

गौमाता की दुर्दशा देख कराह उठेगा आपका दिल, विधायक ने फेसबुक पर बयां किया दर्द

मुझे मेरे तथाकथित बेटों द्वारा मेरा अंतिम समय काटने के लिए गोले के मंदिर पर एक ‘अस्थायी घर’ दिया गया है।
जिसमें पिछले 170 घंटों से ज्यादा समय से मैं लगातार खड़ी हुई हूं क्यूंकि लगातार बारिश से गीली कीचड़ भरी ज़मीन ही मुझे मयस्सर है, उस जगह जहां मेरे नाम पर मांगे वोट से लोग महलों का आनंद लेते हैं। काश! मैं उनकी वोटर होती तो उनकी आस्था भी मुझमें सच्ची होती।

गौमाता की दुर्दशा देख कराह उठेगा आपका दिल, विधायक ने फेसबुक पर बयां किया दर्द

आखिर में विधायक प्रवीण पाठक ने गौमाता की तरफ से  लिखा – सुनो! सरकार, मैं वोटबैंक नही हूँ लेकिन जीवन तो है मुझमें, इस भीषण आपदा में लगभग एक सप्ताह से खड़ी हूँ, मैं इस आस में कि तुम्हारे किसी राजा, महाराजा, मन्त्री, संतरी, अधिकारी को दया न सही मुझ पर तरस आएगी और मेरे लिए कीचड़, बदबूदार पानी, दलदल से हटकर बैठने की व्यवस्था हो पाएगी।अब तो खड़े खड़े मेरी हिम्मत भी जवाब दे रही है, मानो देह कह रही हो कि तुम्हारी झूठी, आडंबर से भरी और सत्ता की लालची दुनिया को त्याग कर वास्तविक गौ लोक ही चली जाऊं काश! तुम्हें मेरी पीड़ा समझ आये और मेरे लिए एक सूखी और सुरक्षित व्यवस्था हो पाए।

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कांग्रेस विधायक प्रवीण पाठक ने अपनी फेसबुक पर लिखा कि “प्रशासन को कई बार गायों की इस दुर्दशा से अवगत करा चुका हूँ पर कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आए। गायों की हालत दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है, आज मैं स्वयं भी वहाँ गया था, यदि प्रशासन जल्द ही कोई सुनवाई नहीं करता है तो हम सब को एक साथ आगे आना होगा, बिना किसी भेदभाव के, बिना किसी दलगत राजनीति के, गाय हम सभी की पूज्य है हम सभी की आस्था का स्तंभ है।

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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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