रातों-रात चौराहे पर रखी गई अंबेडकर की मूर्ति को किया क्षतिग्रस्त, सड़कों पर उतरे दलित

शिवपुरी, मोनू प्रधान। जिले के खोड़ चौकी अंतर्गत बरेला चौराहे पर पिछले दिनों यहां पर रातों-रात रखी गई डॉ भीमराव अंबेडकर की मूर्ति को बीती रात को कुछ अज्ञात लोगों ने क्षतिग्रस्त कर दिया। अंबेडकर की मूर्ति की हाथ की उंगलियां को क्षति पहुंचाई गई है। अंबेडकर की मूर्ति को क्षति पहुंचाए जाने के बाद यहां पर दलित वर्ग के लोग बड़ी संख्या में एकत्रित हो गए और नारेबाजी की और मूर्ति क्षतिग्रस्त करने वाले व्यक्ति की गिरफ्तारी सहित खोड़ चौकी में पदस्थ चौकी प्रभारी को हटाने की मांग की है। अंबेडकर की मूर्ति तोड़े जाने और दलित वर्ग के लोगों के बड़ी संख्या में एकत्रित होने के बाद यहां पिछोर एसडीओपी देवेंद्र सिंह कुशवाह पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे और नारेबाजी कर रहे लोगों को समझाया।

दलित वर्ग से जुड़े बसपा नेता सहदेव जाटव का कहना है कि यहां पर क्षतिग्रस्त मूर्ति के स्थान पर दूसरी मूर्ति रखी जाए, साथ ही खोड़ चौकी प्रभारी को यहां से हटाया जाए। अंबेडकर की जो मूर्ति क्षतिग्रस्त की गई है उसे कुछ दिनों पहले रातों-रात यहां पर स्थानीय प्रशासन की बिना अनुमति के कुछ लोगों द्वारा स्थापित किया गया था। गौरतलब है कि शिवपुरी जिले में दूसरी बार अंबेडकर की मूर्ति को क्षति पहुंचाई गई है। इससे पहले पिछोर तहसील मुख्यालय पर भी इसी तरह से अंबेडकर की मूर्ति को तोड़ दिया गया था विवाद के बाद वहां पर भी नई मूर्ति स्थापित कराई गई थी।


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Gaurav Sharma

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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है। इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।