फसलें ख़राब होने पर किसानों का प्रदर्शन, गले मे फांसी का फंदा लगाकर कर रहे विरोध

Gaurav Sharma
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शिवपुरी,मोनू प्रधान। ज़िले के सिरसौद गांव में किसानों ने गले में फांसी का फंदा डालकर विरोध प्रदर्शन किया। विरोध करने का कारण बारिश की कमी के चलते बर्बाद हुई फसलें और मुआवजे के लिए कोई सरकारी मशीनरी द्वारा सर्वे नहीं किया जाना थी जिसकी मांग को लेकर गले में फांसी का फंदा लगाकर किसानों ने विधोर दर्ज कराया।

किसानों का कहना है कि हमारी फसलें बर्बाद हो गई है और कर्ज भी हो गया। परिवार को पालना मुश्किल हो गया है। वहीं अब तक मुआवजे के लिए बर्बाद हुई फसलों का सर्वे नहीं हुआ है। वक्त रहते हमें मदद नहीं मिली तो हमें फाँसी लगाकर मरना पड़ेगा।

वहीं विरोध कर रहे दूसरे किसान ने कहा कि क्या करें फसलें बारिश की कमी के चलते खराब हो गई है। अगली फसल के लिए खेत में खड़ी ख़राब फसल को टैक्टर चलाकर नष्ट कर रहे हैं और हमारी आर्थिक स्थिति खराब है पर सरकार की तरफ से कोई भी हमारी मदद के लिए सामने नहीं आया है।

पूरे मामले पर कृषि विभाग के आला अधिकारी का कहना है कि कोई फसलें बर्बाद नहीं हुई है। मुआवजे की बात पर बीमा कंपनी द्वारा बीमा मिलने की बात कर अधिकारी अपना पल्ला झाड़ते नजर आए और बोले कि जो लोग अपनी फसल पर ट्रैक्टर चला रहे वह कुछ सब्र रखे।

सरकारें किसी भी दल की हो वह किसानों की नाम पर राजनीति तो करती है पर उनकी सुनवाई कोई भी नहीं करता है। शिवपुरी में बारिश कम होने कारण फसलें बर्बाद हो रही हैं और किसान क़र्ज़ के बोझ तले दब रहा है,भूखों मरने की कगार पर है,जिले की दो विधानसभाओ में उपचुनाव भी होना है अब देखना यह होगा कि किसानों के नाम राजनीति होती है या कोई बाकई में उनकी सुध लेगा।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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