प्रणब दा को किया पूर्व नेता प्रतिपक्ष ने याद, कहा- हमेशा मिला उनसे प्यार, थे पारिवारिक मुखिया

Gaurav Sharma
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सीधी, पंकज सिंह।  देश के पूर्व राष्ट्रपति और भारत रत्न प्रणब मुखर्जी का सोमवार को 84 साल की उम्र में निधन होने से पूरे देश में शोक की लहर छा गई है। उनके निधन की जानकारी उनके बेटे अभिजीत मुखर्जी ने ट्वीट के जरिए दी, जिसके बाद से उन्हें श्रद्धांजलि देने वालों का ताता लग गया।

इसी कड़ी में पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजयसिंह ने भारत रत्न, पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के निधन पर शोक व्यक्त किया है । अजय सिंह ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के साथ ही विभिन्न पदों पर रहकर उन्होंने अपने दायित्वों का कुशलता योग्यता के साथ निर्वहन किया है। भारतीय राजनेताओं में से वे एक ऐसे व्यक्तित्व थे जो देश को नई दिशा देने में सक्षम थे । उन्होंने कहा कि पूज्य दाऊ सा. से उनकी मित्रता, सामीप्य और विशेष अनुराग रहा। मुझे सदैव उनका स्नेह मिला और वे हमारे पारिवारिक मुखिया की तरह थे। उनका चले जाना राष्ट्रीय क्षति के साथ ही मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है जिसकी पूर्ति संभव नहीं है। परमात्मा दिवंगत आत्मा को अपने चरणों मे स्थान दे और शोकाकुल परिजनों को यह आघात सहने की सामर्थ्य प्रदान करे।

बता दें कि पूर्व राष्ट्रपति कोरोना से संक्रमित थे, संक्रमण के चलते उनके फेफड़े में सेप्टिक शॉक लगा है। बीते 10 अगस्त को उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था, वहीं उनकी मस्तिष्क की सर्जरी की गई थी। पूर्व राष्ट्रपति के फेफड़ों में संक्रमण हो गया था।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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