सिंगरौली गुरुद्वारे मे शहीदों के सरताज सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव जी का मनाया गया शहीदी दिवस

SINGRAULI  NEWS- सिख धर्म के पहले शहीद, शांति के पुंज, शहीदों के सरताज, सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव जी की शहादत अतुलनीय है। मानवता के सच्चे सेवक, धर्म के रक्षक, शांत और गंभीर स्वभाव के मालिक गुरु अर्जुन देव अपने युग के सर्वमान्य लोकनायक थे। वह दिन-रात संगत की सेवा में लगे रहते। उनके मन में सभी धर्मों के प्रति अथाह स्नेह था। इनका प्रकाश श्री गुरु रामदास जी के गृह में माता भानी जी की कोख से वैशाख वदी 7 सम्वत् 1620 मुताबिक 15 अप्रैल, 1563 ईस्वी को गोइंदवाल साहिब में हुआ। इनका पालन-पोषण गुरु अमरदास जी जैसे गुरु तथा बाबा बुड्ढा जी जैसे महापुरुषों की देखरेख में हुआ। ये बचपन से ही शांत स्वभाव तथा भक्ति करने वाले थे। गुरु अमरदास जी ने भविष्यवाणी की थी कि यह बालक बहुत ‘वाणी’ की रचना करेगा। इन्होंने बचपन के साढ़े 11 वर्ष गोइंदवाल साहिब में ही बिताए तथा उसके बाद गुरु रामदास जी अपने परिवार को अमृतसर साहिब ले आए। इनकी शादी 16 वर्ष की आयु में ‘गंगा जी’ के साथ हुई।

हरिमंदिर साहिब के चार दरवाजे
गुरु रामदास जी के तीन सुपुत्र बाबा महादेव, बाबा पृथ्वी चंद तथा गुरु अर्जुन देव जी थे। गुरु रामदास जी ने 1 सितम्बर, 1581 ई. को जब गुरु अर्जुन देव जी को गुरु गद्दी सौंपी तो पृथ्वी चंद को इस फैसले की इतनी नाराजगी हुई कि वह गुरु अर्जुन देव जी का हर तरह से विरोध करने लगा। हरिमंदिर साहिब के चार दरवाजे इस बात के प्रतीक हैं कि यह हर धर्म व जाति के लिए खुला है। देखते ही देखते अमृतसर शहर विश्व भर की आस्था का केन्द्रीय स्थान तथा बड़ा व्यापारिक केन्द्र बन गया। इन्होंने नए नगर तरनतारन साहिब, करतारपुर साहिब, छेहर्टा साहिब, श्री हरगोबिंदपुरा आदि बसाए। तरनतारन साहिब में एक विशाल सरोवर का निर्माण कराया जिसके एक तरफ तो गुरुद्वारा साहिब और दूसरी तरफ कुष्ठ रोगियों के लिए एक दवाखाना बनवाया। यह दवाखाना आज तक सुचारू रूप से चल रहा है। सुखमणि साहिब की भी रचना की।


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Sushma Bhardwaj