बेटा चिल्लाता रहा, डॉक्टर ने नहीं देखा, सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के दरवाजे पर माँ ने तोड़ा दम

Atul Saxena
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ग्वालियर, अतुल सक्सेना। कोरोना मरीजों (Corona Patients) के इलाज के लिए बने सुपर स्पेशलिटी अस्पताल (Super Specialty Hospital) प्रबंधन की लापरवाही अब आदत सी बन गई है, यहाँ मरीज इलाज में लापरवाही के आरोप लगते हैं, मरीज के परिजन शव से आंख निकाल लेने जैसे गंभीर आरोप लगाते हैं, शवों को बदलने के आरोप लगते हैं। इसी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल (Super Specialty Hospital) के दरवाजे पर आज शनिवार को एक माँ ने बेटे की आँखों के सामने दम तोड़ दिया। बेटे डॉक्टर से चेक अप करने और भर्ती करने के लिए गुहार लगाते रहे , लेकिन डॉक्टरों का दिल नहीं पसीजा और माँ ने अस्पताल के बाहर सड़क पर दम तोड़ दिया।

जयारोग्य अस्पताल के सुपर स्पेशलिटी अस्पताल (Super Specialty Hospital)  के बाहर सड़क पर शनिवार को जो एक ऐसा दृश्य सामने आया जिसे  देखने वालों की आँखों में आंसू आ गए, उनके दिल धक रहे गए, लेकिन धरती का भगवान् कहे जाने वाले डॉक्टर का ना दिल पसीजा और ना ही उनकी मानवीय संवेदना जागी।

दरअसल ग्वालियर से 30 किलोमीटर दूर मानपुरा गांव से नवल सिंह अपने भाई के साथ मोटर साइकिल पर लेकर जब घर से माँ चंदा बाई को लेकर निकला तो उसे उम्मीद थी कि उसकी माँ का इलाज हो जायेगा और वो ठीक हो जाएगी।  नवल सिंह ने एमपी ब्रेकिंग न्यूज़ को बताया कि माँ की सांस फूल रही थी, सबसे पहले वो बिरला अस्पताल लेकर पहुंचा  वहां डॉक्टर्स ने देखने के बाद कहा कि ऑक्सीजन (Oxygen) लेवल गिर रहा है सुपर स्पेशलिटी अस्पताल (Super Specialty Hospital)  ले जाओ। नवल सिंह माँ को  सुपर स्पेशलिटी अस्पताल (Super Specialty Hospital) लेकर पहुंचा, वहां हेल्प डेस्क पर पहुंचा , माँ को देखने के लिए कहता रहा लेकिन उसे कह दिया गया कई इन्तजार करो।  वो बहुत देर इन्तजार करता रहा फिर माँ की उखड़ती सांसों की दुहाई डॉक्टरों को  देता रहा, डॉक्टरों के सामने मिन्नतें करता रहा लेकिन डॉक्टरों का दिल नहीं पसीजा और वो नवल की माँ को देखने अस्पताल के बाहर भी नहीं आये।

अस्पताल के बाहर सड़क पर पड़ी माँ कराहती रही बेटे इलाज के लिए गुहार लगाते रहे लेकिन दरवाजे के बाहर भी कोई इलाज करने नहीं आया और आखिरकार माँ चंदा बाई की सांस उखड़ गई और उन्होंने तड़प तड़प कर दम तोड़ दिया । नवल का कहना था कि जब माँ की सांस उखड़ रही थी तब अस्पताल के बाहर से एक डॉक्टर निकला, उसने उनसे भी माँ को देखने के लिए कहा लेकिन वो भी भाग गया यदि कोई उसकी माँ को देख लेता, भर्ती कर लेता, ऑक्सीजन मिल जाती तो उसकी माँ बच जाती लेकिन सुपर स्पेशलिटी अस्पताल (Super Specialty Hospital)  के लापरवाह डॉक्टरों ने उससे उसकी माँ छीन ली।  वो निजी खर्चे पर एम्बुलेंस लाया उसने भाई की मदद से अपनी माँ के शव को सड़क से स्ट्रेचर पर रखा यहाँ भी कोई उसकी मदद करने नहीं आया वो शव को एम्बुलेंस में रखकर गांव लाया।

परिजनों को दे दी दूसरी बॉडी, दाह संस्कार के पहले हुआ खुलासा 

शनिवार को चंदा बाई का मामला अकेला नहीं ही जिसमें सुपर स्पेशलिटी अस्पताल (Super Specialty Hospital) की लापरवाही दिखाई दी हो।  अस्पताल प्रबंधन ने किसी का शव किसी को सौंप दिया।  मामले का खुलासा तब हुआ जब मुखाग्नि से पहले बेटे ने पिता का चेहरा देखना चाहा।  जैसे ही बेटे ने चेहरे से कपड़ा हटाया सब चौंक गए वो उनके पिता का शव था ही नहीं। वो शव को लेकर वापस सुपर स्पेशलिटी अस्पताल (Super Specialty Hospital) पहुंचे और फिर बड़ी मशक्कत के बाद उन्हें उनके पिता की बॉडी मिली।

दरअसल समाधिया कॉलोनी में रहने वाले कोरोना पेशेंट  62 साल के छोटेलाल कुशवाह की मौत बीती रात सुपर स्पेशलिटी अस्पताल (Super Specialty Hospital)  में हो गई वे चार दिन से यहाँ भर्ती थे। परिजनों कीमौत की सूचना दी गई तो वे शव लेने पहुंचे।  शव पूरी तरह पैक था उसपर मरीज के नाम की चिट लगी थी। परिजन शव को लेकर सीधे लक्ष्मी गंज मुक्तिधाम पहुंचे।  नगर निगम ने भी अपनी तरफ से जाँच कर ली।  शव को उतार कर अर्थी पर रख दिया , सारे संस्कार पैक अवस्था में ही कर दिए गए, लेकिन बेटे का मन नहीं मन नहीं माना उसने कहा कि मुखाग्नि से पहले पापा का चेहरा देखना है, बेटे ने जैसे ही चेहरे से कपडा हटाया तो चौंक गए वो छोटेलाल कुशवाह का शव नहीं था।

परिजन अंतिम संस्कार रोक कर शव को लेकर वापस सुपर स्पेशलिटी अस्पताल (Super Specialty Hospital) पहुंचे और डॉक्टरों को शिकायत की। लापरवाही सामने आते ही डॉक्टरों में हड़कंप मच गया, अस्पताल में छोटेलाल कुशवाह के शव को तलाशा जाने लगा और आखिरकार 2 घंटे की मेहनत के बाद छोटेलाल कुशवाह का शव मिल गया जिसे लेकर परिजन वापस लक्ष्मीगंज पहुंचे और  अंतिम संस्कार किया।


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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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