Uma Sanjhi Mahotsav: विश्व प्रसिद्ध बाबा महाकाल के आंगन में समय-समय पर कोई ना कोई कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। इसी कड़ी में अब यहां संस्कृति और लोक कला के महापर्व ‘उमा सांझी महोत्सव’ का आयोजन किया जाएगा। पांच दिवसीय इस आयोजन में भोलेनाथ अलग-अलग स्वरूपों में दिखाई देते हैं इसके अलावा लोक कला की प्रस्तुति देने वाले कलाकार अलग-अलग तरह के गीत, संगीत और नृत्य पेश करते हैं।
इस बार 10 अक्टूबर से ‘उमा सांझी महोत्सव’ की शुरुआत हो जाएगी। जिसमें महाकालेश्वर मन महेश स्वरूप में कोटितीर्थ कुंड में नौका विहार करेंगे और ग्वालियर के ढोली बुआ के संकीर्तन के जरिए एक बार फिर भक्त हरि कथा का श्रवण कर सकेंगे। 5 दिनों तक चलने वाला यह कार्यक्रम बहुत ही आनंददायक होता है और भक्त बड़ी संख्या में इसका दीदार करने के लिए पहुंचते हैं। इस महोत्सव में भाग लेने वाले कलाकारों से हर साल आवेदन आमंत्रित किए जाते हैं। इस बार आवेदन के लिए अंतिम तिथि 1 अक्टूबर रखी गई है।
10 अक्टूबर से होगी शुरुआत
अश्विन कृष्ण एकादशी से अमावस्या तक पांच दिवसीय ‘उमा सांझी महोत्सव’ मनाए जाने की परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। एकादशी 10 अक्टूबर को है और अमावस्या 14 अक्टूबर को रहेगी। जिसके चलते अक्टूबर को घट स्थापना करने के साथ वसंत पूजा होगी और 5 दिनों तक मंदिर के पंडे पुजारी रंग महल, उमा महल, किला कोट जैसी खूबसूरत झांकियां रंगोली के रंगों से सजाते हुए दिखाई देंगे और शिव पार्वती के अनेक रूपों की झांकी भी सजेगी।
माता उमा की सवारी
जिस तरह विश्व प्रसिद्ध बाबा महाकाल की सवारी निकाली जाती है, जिसे देखने के लिए दुनिया भर के लोगों की भीड़ उमड़ती है। ठीक उसी तरह से उमा माता की सवारी भी निकाली जाती है। परंपरानुसार यह भी 4बजे शाही ठाठ बाट के साथ निकाली जाएगी। यह सवारी उमा सांझी महोत्सव खत्म होने के बाद अश्विन शुक्ल पक्ष की दूज को निकाली जाती है। चंद्र दूज के नाम से पहचाने जाने वाला यह दिन काफी खास होता है क्योंकि इस दिन भोलेनाथ की जगह माता उमा चांदी की पालकी में विराजित होकर सांझी विसर्जित करने के लिए मां शिप्रा के तट पर जाती हैं।
होता है रतजगा
पांच दिवसीय यह कार्यक्रम अमावस्या के दिन तक चलता है और इसमें महाकालेश्वर के अलग-अलग स्वरूप उमा महेश, मनमहेश, जटाशंकर कोटितीर्थ कुंड में नौका विहार करते दिखाई देते हैं। इसके बाद शाम 7 बजे सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इसमें अलग-अलग जगह से आए कलाकार लोक, संस्कृति और परंपरा की आकर्षक प्रस्तुतियां देते दिखाई देते हैं। अमावस्या पर रात्रि जागरण किया जाता है और उत्सव की समाप्ति होती है।