बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से निकले बाघ ने 15 महीने के मासूम पर किया हमला, मां ने जबड़े से खींचकर बचाई बेटे की जान

Atul Saxena
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उमरिया, डेस्क रिपोर्ट। यहाँ हम एक मां की बहादुरी की एक ऐसी घटना बताने जा रहे हैं जो लगती तो किसी फ़िल्मी कहानी जैसी है लेकिन है हकीकत। दरअसल एक मां अपने 15 महीने के मासूम को बचाने के लिए बाघ से भिड़ गई, उस मां ने ये भी नहीं सोचा कि कि बाघ उसपर भी हमला कर सकता है , उसे तो बच अपने जिगर के टुकड़े की फ़िक्र थी।  और उसने अपनी ममता की ताकत के बल पर अपने मासूम की जिंदगी बचा ली। बाघ के हमले (tiger attack) में मां और बेटा दोनों घायल हुए हैं जिनका इलाज जारी है।

ये पूरी घटना मध्य प्रदेश के प्रसिद्द बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व (Bandhavgarh Tiger Reserve) से सटे एक गांव की है। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से लगा हुआ गांव है रोहनिया ज्वालामुखी। आज रविवार को करीब 12 बजे जब अर्चना चौधरी पत्नी भोला प्रसाद चौधरी अपने 15 महीने के लाल राजवीर के साथ खेत पर काम कर रही थी। बच्चा खेल रहा था तभी एक बाघ जंगल से निकलकर आया उसने मासूम का शिकार करने के लिए जबड़ा खोलकर हमला करने के इरादे से छलांग (tiger attacked innocent) लगाई।

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बाघ की आहट सुनकर अर्चना ने दौड़ लगाई और बाघ को चकमा देते हुए मासूम राजवीर को खींच (Tiger attacked the innocent mother saved life) लिया। हालाँकि बाघ का पंजा तब तक मासूम राजवीर की छाती, पीठ और शरीर के अन्य हिस्से को घायल कर चुका था। बेटे को बचाने गई मां पर भी इस दौरान बाघ ने हमला किया लेकिन उसने बच्चे को छाती से चिपकाया और जमीन पर उसे गिराकर उसके ऊपर लेट गई , इस हमले में अर्चना को भी कई जगह बाघ ने पंजे मारकर घायल कर दिया।

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मासूम को बचा रही अर्चना  की ललकार और बाघ के गुर्राने की आवाज पास में खेतों में काम कर रहे ग्रामीणों को सुनाई दी तो वे लाठी डंडे लेकर शोर मचाते हुए दौड़े तो बाघ जंगल में भाग गया। ग्रामीणों ने घायल मां बेटे को केंद्र में उपचार के लिए पहुंचाया और वन विभाग को इसकी सूचना दी।

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बहादुर मां अर्चना की खबर गांव से लेकर जिले तक आग की तरह फ़ैल गई, हर कोई उसकी न सिर्फ तारीफ कर रहा है  बल्कि मां बेटे के जल्दी ठीक होने की दुआ भी कर रहा है। इस घटना के बाद इस बात को मानने से कोई इंकार नहीं कर सकता कि जिसे लोग अबला समझते हैं वो स्त्री समय आने पर दुर्गा और काली बनकर काल से भिड़ने से नहीं घबराती।


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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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