No.1 शहर Indore का ये कैसा हाल, विशेषज्ञ चिकित्सक और अत्याधुनिक स्वास्थ व्यवस्था होते हुए भी मरीज बेहाल

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इंदौर, डेस्क रिपोर्ट। इंदौर (Indore) को मेडिकल हब (Medical Hub) कहा जाता है। दरअसल, इंदौर देश का सबसे स्वच्छ शहर है लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में ये ही निजी अस्पतालों पर निर्भर है। इंदौर को स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में देश में नंबर वन माना जाता है लेकिन इसकी स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर ही कई बार सवाल खड़े हो जाते हैं। क्योंकि इंदौर में 53 शासकीय अस्पताल और स्वास्थ्य केंद्रों में 1100 से ज्यादा डॉक्टर्स मौजूद है।

इतना ही नहीं 1300 से ज्यादा नर्सिंग स्टाफ भी है। लेकिन उसके बाद भी मरीज इलाज के लिए भटक रहे हैं। सैकड़ों मरीज परेशान हो रहे हैं। क्योंकि अत्याधुनिक सुविधाएं, विशेषज्ञ डाक्टर, कर्मचारियों की तो फौज है लेकिन इलाज नहीं है। मरीजों को डॉक्टर्स के दर्शन तक नहीं हो पाते हैं। इंदौर का सबसे बड़ा अस्पताल कहा जाने वाला एमवाय अस्पताल सिर्फ नर्सिंग स्टाफ और जूनियर डॉक्टर के भरोसे चल रहा है।

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यहां बड़े डॉक्टर्स की शकल मरीजों को देखने के लिए नहीं मिलती है। इतना ही नहीं अत्याधुनिक मशीनों और प्रशिक्षित कर्मचारियों होने के बावजूद भी बड़ी मशक्कत के बाद मरीजों को पैथालाजी की सामान्य जांच की सुविधा मिलती है। ऐसे में मरीज कितना परेशान होगा? क्योंकि किसी को भी मरीजों की परेशानी नजर नहीं आती। वो भले ही मर रहा है तो उसको मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। जब तक मरीजों को इलाज नहीं मिल पाएगा वो कैसे स्वस्थ होंगे?

Indore : ना सुविधा की कमी, ना डॉक्टर्स की फिर क्यों नहीं मिल रहा मरीजों को इलाज?

आपको बता दे, इंदौर में कुल 53 शासकीय अस्पताल और स्वास्थ्य केंद्र मौजूद है। इसमें 1100 से जयदा डॉक्टर्स है और 1300 से अधिक नर्सिंग स्टाफ है। लेकिन फिर भी मरीज भटक रहे हैं। आखिर मरीजों को कब तक ये सब सहन करना होगा? क्योंकि ना तो सरकारी अस्पतालों में किसी सुविधा की कमी है और ना ही डॉक्टर्स की। तो फिर कब तक मरीज अपनी जिंदगी से खिलवाड़ इस वजह से करते रहेंगे?

इंदौर को मेडिकल हब के रूप में जाना जाता है लेकिन उसके बावजूद भी वह पूरी तरह से निजी अस्पतालों पर निर्भर है। बड़ी बात तो ये है कि लोग सरकारी अस्पताल तो चले जाते हैं लेकिन उनको कतारों में लग्न पड़ता है। घंटों तक डॉक्टर्स के दर्शन तक नहीं होते। डाक्टर-कर्मचारी संसाधनों की कमी का हमेशा रोना रोते रहते हैं।

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लेकिन इन्हीं संसाधनों का डॉक्टर्स निजी अस्पतालों में बेहतर इस्तेमाल करते हैं। फिर सरकारी अस्पताल में क्यों नहीं? ऐसे कई सवाल मरीजों की हालत को देख कर रोजाना खड़े होते हैं। लेकिन उस पर कोई एक्शन नहीं लिया जाता हैं। इसी वजह से सरकारी अस्पतालों की छवि लोगों के मन में बिगड़ने लगी है।

इधर-उधर मरीजों को लगवाते है Indore में चक्कर –

हालत ये तक है कि एक बार अगर मरीज सरकारी अस्पताल में चले जाए तो उसे इधर उधर घंटों तक चक्कर लगवाए जाते हैं। लेकिन उसके बाद भी ना तो डॉक्टर्स नसीब होते हैं और ना ही कर्मचारी। ऐसे में मरीज की हालत और बिगड़ जाती हैं। स्वास्थ्य विभाग की स्थिति बेहतर होने के बावजूद भी मरीजों को इलाज नहीं दिया जा रहा है।

Indore के सरकारी अस्पतालों में बदहाली का आलम –

अस्पतालों में सफाई के लिए भारी-भरकम बजट है, कर्मचारियों की फौज है लेकिन फिर भी हालत बदहाल ही है। क्योंकि अस्पतालों में गंदगी इतनी ज्यादा होती है कि सफाई का नामो निशान देखने को नहीं मिलता। सरकारी अस्पतालों के शौचालय में तो जाना तक दुश्वार हो जाता है। क्योंकि सफाई नहीं की जाती है।

इसके अलावा एंबुलेंस से उतारकर मरीजों को वार्ड तक ले जाने के लिए कोई कर्मचारी मौजूद नहीं होता है। ऐसे में मरीजों के परिजनों को खुद मरीजों को वार्ड तक लेकर जाना पड़ता हैं। इतना ही नहीं इधर उधर भटकना तक पड़ता हैं।


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Ayushi Jain

मुझे यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि अपने आसपास की चीज़ों, घटनाओं और लोगों के बारे में ताज़ा जानकारी रखना मनुष्य का सहज स्वभाव है। उसमें जिज्ञासा का भाव बहुत प्रबल होता है। यही जिज्ञासा समाचार और व्यापक अर्थ में पत्रकारिता का मूल तत्त्व है। मुझे गर्व है मैं एक पत्रकार हूं। मैं पत्रकारिता में 4 वर्षों से सक्रिय हूं। मुझे डिजिटल मीडिया से लेकर प्रिंट मीडिया तक का अनुभव है। मैं कॉपी राइटिंग, वेब कंटेंट राइटिंग, कंटेंट क्यूरेशन, और कॉपी टाइपिंग में कुशल हूं। मैं वास्तविक समय की खबरों को कवर करने और उन्हें प्रस्तुत करने में उत्कृष्ट। मैं दैनिक अपडेट, मनोरंजन और जीवनशैली से संबंधित विभिन्न विषयों पर लिखना जानती हूं। मैने माखनलाल चतुर्वेदी यूनिवर्सिटी से बीएससी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में ग्रेजुएशन किया है। वहीं पोस्ट ग्रेजुएशन एमए विज्ञापन और जनसंपर्क में किया है।

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