मप्र चुनाव : यहां चतुष्कोणीय मुकाबले में फंसी भाजपा और कांग्रेस, वोट कटने-काटने का डर

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रीवा।

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कही कांग्रेस-बीजेपी आमने-सामने है तो कही त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है, लेकिन इस सब के बीच रीवा जिले की गुढ़ विधानसभा सीट मे लड़ाई चार कोणीय होती नजर आ रही है।  वर्ष 2013 के चुनाव में गुढ़ सीट में चतुष्कोणीय मुकाबला रहा। यहां सीधे मुकाबले की संभावना थी लेकिन जिस तरह से परिणाम आए वह चौकाने वाले थे। यहां कांग्रेस और भाजपा के बीच अंतर महज 13 सौ वोटों का रहा। इसी तरह बसपा के मुनिराज पटेल और निर्दलीय कपिध्वज सिंह 25 हजार से अधिक वोट पाए थे। इस बार के चुनाव में वही चारों प्रमुख प्रत्याशी मैदान में हैं, जिनके बीच पूर्व में कड़ा मुकाबला रहा है। ऐसे में ये कांटे की टक्कर का मुकाबला चुनाव को और रोचक बना रहा है।हालांकि इस मुकाबले ने भाजपा कांग्रेस की नींद उड़ा दी है। दोनों ही दल इस सीट को हथियाने में जोर लगा रहे है।वर्तमान में यहां कांग्रेस  का कब्जा है और सुंदर लाल तिवारी यहां से विधायक है।

खास बात तो यह है कि इस सीट पर हार-जीत में जातीय समीकरण के साथ ही स्थानीय मुद्दे भी अपनी प्रमुख भूमिका निभाते आए हैं। 2013 के चुनाव में सड़क व पानी प्रमुख मुद्दा था, तो 2018 में गुढ़ में हुई जमीन की बंदरबांट व एप्रोच रोड की दुर्दशा प्रमुख मुद्दा बना हुआ है। विद्यालयों के उन्नयन व गुढ़ नगर पंचायत में कन्या महाविद्यालय की मांग लंबे समय से चली आ रही है। वही 2014 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी भी भाजपा का खेल बिगाड़ चुके हैं।

दरअसल, गुढ़ परंपरागत रूप से भाजपा की सीट मानी जाती रही है, लेकिन 2013 के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे कुंवर कपिलध्वज सिंह ने सभी दलों का गणित ही बिगाड़कर रख दिया था, इसका फायदा कांग्रेस को मिला था और सुंदरलाल तिवारी विधायक बन गए थे। इस बार स्वयं कपिलध्वज सिंह निर्दलीय राजनीति करने का मन बना चुके हैं। कांग्रेस से सुंदरलाल तिवारी, भाजपा से नागेन्द्र सिंह, बसपा से मुनिराज पटेल एवं पूर्व में निर्दलीय प्रत्याशी रहे कपिध्वज सिंह इस बार समाजवादी पार्टी से मैदान में हैं लिहाजा गुढ़ विधानसभा के राजनीतिक समीकरण उलझते हुए दिखाई दे रहे हैं। भाजपा, कांग्रेस सपा और बसपा में चार कोणीण मुकाबला होगा।

चारों के बीच मुकाबला बड़ा चुनौतीपूर्ण

भाजपा- प्रत्याशी नागेन्द्र सिंह की मुश्किलें इसलिए बढ़ रही हैं कि पिछला चुनाव हारने के बाद लंबे समय तक वह निष्क्रिय रहे। सरकार के खिलाफ विरोध का सामना भी उन्हें करना पड़ रहा है। एससीएसटी वर्ग के वोट पर पकड़ मजबूत बनाई है। 

कांग्रेस- सुंदरलाल तिवारी पांच साल तक विधायक रहे तो कुछ जगहों पर लोगों की अपेक्षा के अनुरूप काम नहीं कर पाने का विरोध झेलना पड़ रहा है। हालांकि इनका जातिगत बड़ा वोट बैंक क्षेत्र में है। इसलिए नाराज वोटरों की भरपाई करने के प्रयास में हैं।

बसपा- बसपा का अपना आधार वोट और प्रत्याशी का जातिगत वोट मजबूती का कारण बन रहा है लेकिन जीत की स्थिति में पहुंच पाएंगे यह मतगणना में ही स्पष्ट होगा। पिछले चुनाव में यही प्रत्याशी थे और तीसरे नंबर पर रहे। 

सपा- पिछले चुनाव में निर्दलीय रहे कपिध्वज सिंह इस बार समाजवादी पार्टी से प्रत्याशी हैं। उन्होंने स्थानीय बनाम बाहरी प्रत्याशी का नारा क्षेत्र में दिया है। भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशी क्षेत्र के बाहर के निवासी हैं। इनके अपने गांव के क्षेत्र बड़ा वोटबैंक है। सपा के निष्क्रिय हो चुके कार्यकर्ताओं को जोड़ा है। पूर्व की अपेक्षा चुनाव प्रचार इस बार व्यापक नजर आ रहा है। इनके समर्थकों की मानें तो क्षेत्र में जिसका भी मुकाबला होगा, इन्हीं से होगा। 


ये मुद्दे चुनाव में हो रहे हावी

– स्थानीय बनाम बाहर से आए प्रत्याशी।

– सोलर प्लांट बदवार में स्थानीय लोगों को रोजगार की समस्या।

– स्वास्थ्य की बदहाल स्थिति।

– सडक़ और पानी की क्षेत्र में बड़ी समस्या।

– पहडिय़ा गांव में निगम का क्लस्टर कचरा संयंत्र।

– स्किल डेवलपमेंट के संसाधन।


पिछले चुनाव में यह रहा परिणाम


वर्ष 2013

कांग्रेस- सुंदरलाल तिवारी,- 33741

भाजपा- नागेन्द्र सिंह- 32359

बसपा- मुनिराज पटेल- 26099

निर्दलीय- कपिध्वज सिंह- 25510

वर्ष 2008

भाजपा नागेन्द्र सिंह, 31689

कांग्रेस, राजेन्द्र मिश्रा 20311- 

बसपा- नारायण मिश्रा-17699

जातीय समीकरण

ब्राह्मण – 35 हजार, क्षत्रीय -10 हजार, पटेल -15 हजार, यादव – 8 हजार, एससी -12 हजार, एसटी – 15 हजार, वैश्य – 15 हजार, भुजवा, मुसहर, पनिका, माझी, बिंद, मल्लाह – 10 हजार, मुस्लिम- 5 हजार


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