Ambubachi Mela 2023 : कामाख्या देवी मंदिर, जो नीलाचल पर्वत पर स्थित है, एक प्रमुख शक्तिपीठ माना जाता है और यह भारत के अद्वितीय मंदिरों में से एक है। यह मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के उपनगर प्रदेश में स्थित है। इस मंदिर में कामाख्या देवी की पूजा और अर्चना की जाती है जो कि तंत्र-मंत्र साधनाओं के लिए भी प्रसिद्ध हैं और इसलिए यहां तांत्रिक सम्प्रदायों के साधु-संत भी आते हैं। यहां हर साल मासिक और वार्षिक आयोजन होता है। जिसमें सबसे प्रमुख आयोजन अम्बुबाची मेला है जो चैत्र मास के दौरान होता है। इस मेले में देश और विदेश से लाखों श्रद्धालु आते हैं। यह मेला 4 दिन चलता है और इसका मुख्य आकर्षण मेले के अंतिम दिन को होने वाली अम्बुबाची व्रत की अनुष्ठानिक पूजा होती है।
गर्भगृह के द्वार खुद हो जाते हैं बंद
धर्म के विभिन्न आचारों और परंपराओं में अंतर हो सकता है और कुछ स्थानों पर अनैतिकता और जातिवाद के खिलाफ लड़ाई के कारण महिलाओं की माहवारी के दौरान पूजा नहीं की जाती है। मान्यता है कि मां कामाख्या का योनि इस मंदिर में विराजमान है और इसे प्रतिष्ठित रखा गया है। यह माता के मासिक धर्म के दौरान मां का पूजन करने का एकमात्र स्थान माना जाता है।
अंबूबाची पर्व एक महत्वपूर्ण उत्सव है जो मां कामाख्या के पीरियड्स के समय मनाया जाता है। इस उत्सव में मां कामाख्या को उसके गर्भगृह में चले जाने का संकेत माना जाता है। इस दौरान मां को अपने मासिक धर्म की शुरुआत होती है और गर्भगृह के द्वार खुद-ब-खुद बंद हो जाते हैं। इस पर्व को हर साल 22 जून को मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन से मां कामाख्या का वार्षिक मासिक धर्म शुरू होता है।
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ब्रह्मपुत्र नदी का पानी हो जाता है लाल
अंबुबाची पर्व और ब्रह्मपुत्र नदी के पानी के रंग के बारे में मान्यताएं और कथाएं पश्चिम बंगाल राज्य में प्रचलित हैं। कामाख्या देवी, जिन्हें शक्ति का प्रतीक माना जाता है का मासिक धर्म होता है और इस कारण ब्रह्मपुत्र नदी का पानी लाल हो जाता है। यह विशेष पर्व तीन दिनों तक चलता है, जिस दौरान ब्रह्मपुत्र नदी के पानी का रंग लाल होता है। इसके बाद, उस पानी का रंग अपने आप ही साधारण हो जाता है और नदी का पानी फिर से उसकी सामान्य रंग प्राप्त करता है।
(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना अलग-अलग जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है।)