Employees Retirement Age Hike : केंद्र सरकार के कर्मचारियों के द्वारा एक तरफ जहां सेवानिवृत्ति आयु की मांग शुरू हो गई है। वहीं कई राज्य सरकार द्वारा भी रिटायरमेंट आयु में वृद्धि की तैयारी की गई। हालांकि राज्य कर्मचारी भी लगातार सेवानिवृत्ति आयु की मांग कर रहे हैं। इसी बीच सेवानिवृत आयु में बढ़ोत्तरी के कई मामले हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी लंबित है। वही एक महत्वपूर्ण मामले में सेवानिवृत्ति आयु को 5 वर्ष के लिए बढ़ाए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है।
उच्च न्यायालय के आदेश रद्द
सर्वोच्च न्यायालय ने त्रिपुरा उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्ति आयु में वृद्धि के आदेश को रद्द कर दिया है।दरअसल त्रिपुरा उच्च न्यायालय द्वारा आदेश दिया गया था। जिसमें राज्य के आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की रिटायरमेंट की न्यूनतम आयु 60 से बढ़ाकर 65 वर्ष करने के निर्देश दिए गए थे।वहीं सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और कर्मियों को बड़ा झटका लगा है।
जिसके बाद राज्य सरकार द्वारा इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने सुनवाई के दौरान महत्वपूर्ण आदेश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि मौजूदा वैधानिक मानदंड के तहत यह राज्य सरकार है, जो आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की सेवानिवृत्ति आयु सहित उनकी सेवा शर्तों को तय करने की शक्ति रखती है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कार्य की प्रवृत्ति और सेवाओं के संरक्षण को देखते हुए जब राज्य सरकार द्वारा मानद कर्मचारियों की उक्त सेवा शर्तों को तय करने के लिए प्राथमिक प्राधिकरण है। ऐसे में कोई भी आदेश जारी नहीं किया जा सकता था कि सेवा मुक्ति की एक विशेष आयु को बल दिया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट की टिपण्णी
इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने राज्य को अपनी नीति बदलने के निर्देश देने को लेकर उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ भी उन पर कड़ी टिप्पणी करते हुए उन्हें फटकार लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डिविजन बेंच द्वारा यह विचार की सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाकर स्थानापन्न की आवश्यकता तर्क से परे है और किसी भी मामले में राज्य सरकार को अपनी नीति में बदलाव करने के लिए मजबूर करने के लिए कानूनी आधार प्रदान नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि राज्य सरकार को अपनी नीति बदलने के लिए परम आदेश जारी करने के लिए कोई आधार प्रदान नहीं किया जा सकता, खासकर तब जब नीति किसी भी तरह से अवैध और तर्क हीनता से पीड़ित नहीं हो।
60 वर्ष से बढ़कर 65 वर्ष होती सेवानिवृति आयु
पहले मामला हाईकोर्ट में था। जिस पर त्रिपुरा हाई कोर्ट ने तर्क दिया था कि केंद्र सरकार एकीकृत बाल विकास योजना का 90% वित्त पोषण करती है। जिसके तहत ऐसे श्रमिकों को नियोजित किया जाता है। ऐसे कदम से राज्य को बहुत अधिक वित्तीय प्रभाव नहीं पड़ेगा। ऐसे में राज्य सरकार को कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु को 5 वर्ष तक बढ़ाने के निर्देश दिए गए थे। यदि ऐसा होता तो कर्मचारियों के रिटायरमेंट आयु 60 वर्ष से बढ़कर 65 वर्ष हो सकती थी।
यह है महत्वपूर्ण फैसला
हालांकि उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया गया लेकिन स्पष्ट किया गया कि उच्च न्यायालय के आदेश से लाभान्वित होने वाले श्रमिकों को पहले से भुगतान की राशि वापस नहीं लिए जा सकेंगे और ना ही उन्हें सेवा से हटाया जा सकता है। इसके साथ ही त्रिपुरा में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की सेवानिवृत्ति आयु को 60 वर्ष ही माना जाएगा।