सर्वप्रथम सूर्यदेव करते हैं घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की आराधना, यहां जानें रोचक इतिहास और चमत्कार

Diksha Bhanupriy
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Grishneshwar Jyotirlinga: भारत में 12 ज्योतिर्लिंग हैं, जो भक्तों के बीच गहरी आस्था का केंद्र है। सभी तीर्थों की अपनी अपनी परंपरा, मान्यताएं और चमत्कार है, जो सदियों से भक्तों को आकर्षित करती आ रही है। 12 ज्योतिर्लिंग में से सबसे ज्यादा ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र में है और उन्हीं में से एक है घृष्णेश्वर महादेव, जो लाखों भक्तों के आराध्य हैं।

महाराष्ट्र में तीन ज्योतिर्लिंग स्थापित है। भीमाशंकर, त्रयंबकेश्वर और घृष्णेश्वर, इनमें से घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग औरंगाबाद के पास पड़ने वाले दौलताबाद क्षेत्र में पड़ता हैं। आज हम आपको इस मंदिर के इतिहास, चमत्कार और मान्यताओं के बारे में बताते हैं।

ऐसे पड़ा घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग नाम

पौराणिक समय में महादेव की अनन्य भक्त रही घुष्मा के नाम पर इस जगह का नाम घृष्णेश्वर पड़ा है। यहां एक सरोवर मौजूद है, जिसके दर्शन के बिना महादेव की यात्रा अधूरी मानी जाती है। मान्यताओं के मुताबिक निसंतान दंपत्ति अगर सूर्योदय से पूर्व शिवालय सरोवर के दर्शन कर महादेव को नमन करते हैं, तो उन्हें संतान की प्राप्ति होती है।

Grishneshwar Jyotirlinga

सूर्य देव करते हैं आराधना

ये ज्योतिर्लिंग पूर्वमुखी और स्वयं सूर्य देवता सबसे पहले इसकी पूजन अर्चन करते हैं। मान्यताओं के मुताबिक ये ज्योतिर्लिंग सूर्य देवता के पूजे जाने के कारण दैहिक, दैविक और भौतिक तापों के धर्म के साथ, काम, अर्थ, मोक्ष प्रदान करते हैं। कहा जाता है कि ज्योतिर्लिंग के स्मरण मात्र से सभी तरह के दुख रोग और दोष से मुक्ति मिल जाती है।

Grishneshwar Jyotirlinga

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा

इस ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कहानी के मुताबिक दक्षिण में स्थित देवगिरी पर्वत के पास ब्राह्मण पति-पत्नी सुधर्मा और सुदेहा निवास करते थे। इन दोनों की कोई संतान नहीं थी जिसके चलते चिंतित होकर ब्राह्मण की पत्नी ने अपने पति का विवाह छोटी बहन घोषणा से करवा दिया, जो भगवान शिव की अनन्य भक्त थी। भोलेनाथ की कृपा से उन दोनों को पुत्र की प्राप्ति हुई और घुष्मा का हंसता खेलता परिवार देखकर अब सुदेजा के मन में ईर्ष्या की भावना पनपने लगी थी। 1 दिन क्रोध में आकर उसने अपनी बहन की संतान को हत्या कर कुंड में फेंक दिया।

शिव कृपा से वापस मिला पुत्र

घुष्मा को जब यह पता चला कि उसके पुत्र की मृत्यु हो गई है तो उसने खुद को शिव भक्ति में लीन कर लिया। भोलेनाथ उसकी भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हीं के वरदान से घुष्मा का आउट पुनः जीवित हो उठा।

भक्त को उसका पुत्र लौटाने के साथ भगवान शिव ने एक और वरदान देते हुए कहा कि मैं सदा इसी स्थान पर तुम्हारे नाम से घुश्मेश्वर कहलाते हुए वास करूंगा। प्राचीन काल में घोष माने यहां पर 101 पार्थिव शिवलिंग बनाकर भोलेनाथ को प्रसन्न किया था। इसलिए यहां पर मनोकामना पूरी होने पर 101 परिक्रमा की जाती है।

(Disclaimer यहां दी गई सूचना मान्यताओं और जानकारी के आधार पर उपलब्ध कराई गई है। MP Breaking News इसकी पुष्टि नहीं करता।)


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