भोपाल, डेस्क रिपोर्ट | आज 2 अक्टूबर को पूरे देश में गांधी जयंती (Gandhi Jayanti 2022) मनाई जा रही है। बता दें कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देश को आजाद कराने की मुहिम चलाई थी। उन्होंने शांति का रास्ता अपनाकर देश को अंग्रेजों के कब्जे से मुक्त कराया था। केवल इतना ही नहीं महात्मा गांधी ने महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार दिलवाया था। आइए पढ़ते हैं गांधी जी के महिलाओं के प्रति आदर और सम्मान की कुछ रोचक तथ्यें…
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महिलाओं के प्रति आदर का भाव गांधी जी के चरित्र का मुख्य गुण था। वे स्त्री शक्ति को भली-भांति जानते और समझते थे। उनके शब्दों में महिला को अबला कहना उसकी मानहानि करना था। स्त्रियों के लिए गांधी जी के हृदय में अत्यंत गहरी सहानुभूति और आदर का भाव था। उनका मानना था कि स्त्रियों में चारित्रिक और नैतिक शक्ति पुरुष से अधिक होती है। उनमें त्याग, प्रेम और अहिंसा की शक्ति भी अधिक होती है। गांधी जी ने स्त्री को पुरुष से अधिक उच्चतर गुणों और नैतिकता से युक्त माना है। उनका कहना था कि स्त्री और पुरुष दोनों को परिवार तथा समाज में समान महत्व व पहचान मिलनी चाहिए, जिससे समाज में संतुलन बना रहे।
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भारतवर्ष की महान संस्कृति स्त्री-पुरुष की समानता पर आधारित है। हमारे यहां की संस्कृति में स्त्री को शक्ति स्वरूपा माना गया है। शास्त्रों के अनुसार, मनु और ‘शतरूपा‘ दो आदि पूर्वज थे, जिनसे इस सृष्टि में मानव जाति की उत्पत्ति हुई है। इस सृष्टि का अस्तित्व और उसका गतिमान चरित्र भी स्त्री और पुरुष दो स्तंभों पर टिका हुआ है। बता दें कि भारत एक ऐसा देश है जहां स्त्रियों की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि जहां स्त्रियों की पूजा नहीं होती है, उनका सम्मान नही होता है, वहां किए गए अच्छे कर्म भी निष्फल हो जाते है और जिस घर में स्त्रियों का अनादर होता है, उस घर में परिवार, कुल का जल्द ही विनाश हो जाता है। मनुस्मृति में कहा गया है –
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।।
शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम्।
न शोचन्ति तु यत्रैया वर्धते तद्धि सर्वदा ।।
जिसका अर्थ यह है कि जहां स्त्री को देवी की तरह पूज्यते हैं वहां पर स्वंय भगवान का वास होता है और जहां स्त्रियां प्रसन्न रहती है, वह कुल सर्वदा समृद्ध रहता है। हमारे देश में देवी को आदि शक्ति मानकर उनकी उपासना की जाती है। इस बात को आध्यात्मिक रूप से भी स्वीकार किया गया है कि सृष्टि के सभी देव, दानव, यक्ष, किन्नर और मनुष्य, स्त्री से ही शक्ति प्राप्त करते हैं। इसलिए साल में दो बार हमारे देश में मां दूर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है। शतपथ ब्राह्मण में लिखा है कि – ‘पत्नी पुरुष की आत्मा का आधा भाग है’। इसीलए स्त्री को पुरुष की अर्धांगनी कहा जाता है क्योंकि स्त्री और पुरुष दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं और एक-दूसरे के बिना अस्तित्वहीन भी है। बता दें कि सृष्टि की रचना में दोनों का बराबर योगदान रहा है।
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जैसे-जैसे मनुष्य सभ्य होता गया वैसे-वैसे स्त्री पुरुष के बीच की समानता खत्म होती गई। पुरुष स्वयं को स्वयंभु सर्वश्रेष्ठ समझने लगा। उसने स्त्री को उपभोग की वस्तु, प्रदर्शन का छायाचित्र और वासना तृप्ति का साधन मात्र बना दिया। बदलते समय के साथ समाज में पूज्जनीय माने जाने वाली स्त्री को असूचित घोषित कर दैवीय स्थानों पर उसका प्रवेश निषिद्ध कर दिया। सदियों से पितृसत्तात्मक सामंतवादी सामाजिक ढांचे में स्त्रियाँ धर्म, मान्यताओं, परम्पराओं और रूढ़ियों का शिकार होती रहीं लेकिन 19वीं शताब्दी में अनेक समाज सुधारकों ने स्त्री के समुचित उत्थान के लिए सार्थक प्रयास किये। स्त्री नवजागरण में महात्मा गांधी के विचारों ने स्त्री समुदाय को गति देने और अनेक सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक उत्थान में उत्प्रेरक का कार्य किया और इस तरह भारतवर्ष में स्त्री उत्थान के संघर्ष और स्त्री-पुरुष समता का देश व्यापी जागरण लाने में महात्मा गांधी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
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