नई दिल्ली| केंद्र की मोदी सरकार ने अपने पांच साल के कार्यकाल के अंतिम समय में एक ऐसा फैसला किया है, जिसका बड़ा असर आगामी लोकसभा चुनाव में देखने को मिलेगा| सामान्य वर्ग के पिछड़ों को आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण के फैसले को अमल में लाने के लिए कानून में संसोधन किया जा रहा है| आखिरी दौर में सरकार की इस उठापठक को लेकर कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं| इस निर्णय के बाद राजनीतिक गलियारों में इसके आम चुनाव पर पड़ने वाले असर पर चर्चा शुरू हो गई है। क्या इस मास्टर स्ट्रोक से मोदी लहर एक बार फिर रफ़्तार पकड़ेगी, साथ ही कयास लगने लगे हैं कि क्या पीएम मोदी का ये मास्टरस्ट्रोक 2019 में भाजपा को दोबारा सत्ता दिला पाएगा। इस बीच सवर्ण आरक्षण बिल पास होने के बाद से ही लोगों की इस पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। नोबेल पुरस्कार विजेता और प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने सवर्ण आरक्षण को ‘अव्यवस्थित सोच’ बताया जो इस फैसले के राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव पर गंभीर सवाल खड़े करती है| उन्होंने कहा कि इस तरह की नीति एक ‘अव्यवस्थित सोच’ को दर्शाती है और इसके गंभीर राजनीतिक और आर्थिक नतीजे हो सकते हैं।
उन्होंने समाचार एजेंसी से कहा कि कि मोदी सरकार ने यूपीए सरकार के शासनकाल में हुई उच्च आर्थिक वृद्धि को कायम तो रखा लेकिन उसे नौकरियों के सृजन, गरीबी के उन्मूलन और सभी के लिए बेहतर स्वास्थ्य तथा शिक्षा में नहीं बदला जा सका। सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सरकारी नौकरियों एवं शैक्षणिक संस्थानों में 10 प्रतिशत आरक्षण देने के सरकार के कदम पर उन्होंने कहा, उच्च जाति वाले कम आय के लोगों के लिए आरक्षण एक अलग समस्या है। उन्होंने कहा, अगर सारी आबादी को आरक्षण के दायरे में लाया जाता है तो यह आरक्षण खत्म करना होगा। सेन ने कहा, अंततोगत्वा यह एक अव्यवस्थित सोच है। लेकिन इस अव्यवस्थित सोच के गंभीर राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव हो सकते हैं जो गंभीर सवाल खड़े करती है।
बता दें कि केंद्र सरकार ने बुधवार को सवर्ण आरक्षण विधेयक को राज्य सभा में पेश किया था और यहां से भी यह पारित हो गया है. इससे पहले मंगलवार को लंबी बहस के बाद लोकसभा में यह विधेयक पारित हो गया था. तब इसके पक्ष में 323 जबकि विरोध में तीन वोट पड़े थे|