Manipur Violence News: मणिपुर में मैतई समाज को अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल करने की मांग को लेकर हिंसक प्रदर्शन लगातार जारी है और इसी के चलते यहां के चुराचांदपुर, इंफाल समेत अन्य क्षेत्रों में आदिवासी और मैतई लोगों के बीच झड़प होने की जानकारी भी सामने आई है। हिंसा को देखते हुए सरकार ने भी बड़ा आदेश जारी कर दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश जारी कर दिए हैं। भारतीय सेना लगातार अलर्ट मोड पर है और सुरक्षा की स्थिति को देखते हुए राज्य में वायरल किए जा रहे फर्जी वीडियो से लोगों को सतर्क रहने की समझाइश भी दी गई है।
Manipur Violence के फर्जी वीडियो
मणिपुर में फैली हिंसा के बाद सोशल मीडिया के जरिए इस आग को भड़काने की कोशिश की जा रही है और कुछ फर्जी वीडियो वायरल किए जा रहे हैं, जिसमें असम राइफल पोस्ट पर हमले का वीडियो भी शामिल है। इसी को देखते हुए सेना ने नागरिकों से सत्यापित खबरों पर भरोसा करने की अपील की है और फर्जी वीडियो पर ध्यान ना देने और उसे आगे ना बढ़ाने को भी कहा है। राज्य में हुई हिंसक घटनाओं के दौरान कई घरों, दुकानों और धार्मिक स्थलों को आग के हवाले कर दिया गया है। इंफाल में एक विधायक पर हमला होने की खबर भी सामने आई है।
भारतीय सेना ने किया ट्वीट
राज्य की हालत को देखते हुए भारतीय सेना की ओर से ट्वीट किया गया है जिसमें लिखा है कि असम राइफल पोस्ट पर हमले का जो वीडियो वायरल हो रहा है वह फर्जी है, जिसे असामाजिक तत्वों द्वारा निजी स्वार्थ के लिए फैलाया जा रहा है। भारतीय सेना आप सभी से अनुरोध करती है कि सत्यापित स्त्रोतों और अधिकारिक माध्यमों से दी जाने वाली खबरों पर भरोसा करें, अन्य खबरों पर ध्यान ना दें।
#Manipur Update
Fake Videos on security situation in Manipur including a video of attack on Assam Rifles post is being circulated by inimical elements for vested interests. #IndianArmy requests all to rely on content through official & verified sources only@adgpi@easterncomd pic.twitter.com/Y58eROsZRM— SpearCorps.IndianArmy (@Spearcorps) May 4, 2023
ऐसे हैं राज्य के हालात
राज्य में हो रही हिंसक घटनाओं को देखते हुए सेना और असम राइफल्स के 55 कॉलम तैनात किए गए हैं। गुरुवार को चुराचांदपुर और इंफाल घाटी के कई क्षेत्रों में फ्लैग मार्च भी किया गया और केंद्र में रैपिड एक्शन फोर्स की कई टीमों को भी यहां पर भेजा है।
हिंसा के बाद 9000 लोगों को अपने आशियाने छोड़कर दूसरी जगह जाना पड़ा है। 500 से ज्यादा लोग इंफाल पश्चिम की ओर अपने घरों से भाग गए हैं। 5 दिनों के कोई राज्य में इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है।
क्यों बने ऐसे हालात
मणिपुर में रहने वाला गैर आदिवासी मैतेई समुदाय सरकार से खुद को शेड्यूल ट्राइबल घोषित करने की मांग कर रहा है। इस मांग का आदिवासी समुदाय द्वारा विरोध किया जा रहा है। विरोध जताने के लिए आदिवासियों ने ट्राइबल सॉलिडेरटी मार्च बुलाया था और उसी के बाद ये हिंसा भड़की है।
ये मांग साल 2012 से उठाई जा रही है जो शेड्यूल्ड ट्राइब्स डिमांड कमिटी ऑफ मणिपुर उठाती है। 1949 में मणिपुर के भारत में शामिल होने से पहले मैतेई को जनजाति माना जाता था लेकिन भारत में शामिल होने के बाद यह दर्जा खत्म हो गया। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में जब एसटी का दर्जा दिए जाने की मांग उठी थी तो ये कहा गया था कि समाज को पैतृक भूमि, परंपरा, भाषा और संस्कृति को सुरक्षित रखने के लिए एसटी का दर्जा दिया जाना जरूरी है।
क्यों हो रह विरोध
इस विरोध की वैसे तो कई सारी वजह है लेकिन अहम मुद्दे पर बात की जाए तो मैतेई समुदाय की आबादी और राजनीतिक प्रतिनिधित्व दोनों ही ज्यादा है। राज्य की 60 सीटों में से 40 सीटें घाटी से आती है, जहां पर यही समुदाय बहुतायत में वास करता है। ऐसे में जनजातियों के अंदर यह डर है कि अगर इस समुदाय को एसटी का दर्जा दे दिया गया तो उनके लिए रोजगार के अवसर कम हो जाएंगे।
वहीं एसटी की मांग कर रही शेड्यूल्ड ट्राइब्स डिमांड कमेटी ऑफ मणिपुर का कहना है कि समुदाय की आबादी का हिस्सा लगातार घटता जा रहा है। 1951 में यह 59% था और 2011 की जनगणना में 44% रह गए हैं। विरोध कर रहे लोगों का यह भी कहना है कि समुदाय की भाषा मणिपुरी को पहले ही संरक्षित कर लिया गया है और उससे संविधान की आठवीं अनुसूची में जगह भी मिली है और मैतेई समुदाय के लोगों को एससी और ओबीसी केटेगरी का आरक्षण पहले से ही मिल रहा है।
कितना बड़ा है मैतेई समुदाय
मणिपुर में वैसे कई समुदाय निवास करते हैं लेकिन सबसे बड़ा हिस्सा मैतेई का है। राज्य के कुल क्षेत्र का 10% हिस्सा घाटी वाला है, जहां पर यही लोग रहते हैं और यह कुल आबादी का 64.6% है। बाकी बचा हुआ 90% क्षेत्रफल पहाड़ी इलाका है जो घाटी के चारों ओर फैला हुआ है यहां पर मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती है जो राज्य की जनजाति का 35.4% हिस्सा है। इन्हीं अलग अलग जनजातियों में ये हिंसा छिड़ी हुई है।