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Sun, Dec 21, 2025

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के कहने पर हुई थी Teachers Day मनाने की शुरुआत, जानें इस दिन का इतिहास

Written by:Diksha Bhanupriy
Published:
आज यानी 5 सितंबर को पूरा देश शिक्षक दिवस मना रहा है। इस दिन को शिक्षक के प्रति सम्मान के तौर पर मनाया जाता है। दरअसल, आज डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती है, जो एक महान शिक्षक थे।
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के कहने पर हुई थी Teachers Day मनाने की शुरुआत, जानें इस दिन का इतिहास

Teachers Day 2024: आज 5 सितंबर है, जिसे पूरा देश शिक्षक दिवस के रूप में मनाता है। हर साल यह दिन शिक्षकों को समर्पित करते हुए सेलिब्रेट किया जाता आ रहा है। ये दिन आमतौर पर डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन से जुड़ा हुआ है, जो एक महान शिक्षक थे। उन्होंने भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का पद भी संभाला है।

दरअसल शिक्षक दिवस मनाए जाने की शुरुआत तब हुई जब राधाकृष्णन के एक शिष्य ने उनके जन्मदिन को मनाने की बात कही। अपने छात्र की बात जानने के बाद डॉ सर्वपल्ली ने उससे कहा कि मेरा जन्मदिन मनाने की जगह अगर शिक्षक दिवस मनाया जाए तो यह मेरे लिए गर्व की बात होगी। यहीं से शिक्षक दिवस मनाए जाने की शुरुआत हुई थी।

शिक्षक दिवस पर डॉ राधाकृष्णन की जयंती

पूरी दुनिया 5 अक्टूबर को शिक्षक दिवस मनाती है लेकिन भारत में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। इसे देश के पहले वाइस प्रेसिडेंट और दूसरे प्रेसिडेंट डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के तौर पर मनाया जाता है। ये वही दिन है जब डॉ सर्वपल्ली का जन्म हुआ था। उन्हें सम्मान देने के लिए इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है।

Teachers Day

इस दिन का महत्व

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपने जीवन के 40 साल शिक्षक के तौर पर बिताए थे। उन्होंने हमेशा यही बात कही कि शिक्षकों को सम्मान मिलना चाहिए। वह कहते थे कि शिक्षक समाज को नया आईना देते हैं और व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों का सामना करना सिखाते हैं। उनकी इन्हीं बातों को मानकर हर साल आपके गुरु के प्रति प्रेम और सम्मान प्रकट करने के लिए शिक्षक दिवस मनाया जाता है और तरह-तरह के आयोजन किए जाते हैं।

डॉ सर्वपल्ली का जीवन

हमारे देश के महान शिक्षकों में से एक डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन की बात करें तो 5 सितंबर 1888 को आंध्र प्रदेश के छोटे से शहर में उनका जन्म हुआ था। मद्रास के क्रिश्चियन कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय और कोलकाता विश्वविद्यालय जैसे कहीं संस्थानों में प्रोफेसर के रूप में काम किया। उनके शानदार प्रयासों के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पूर्वी धर्म और नैतिकता के स्पैलिंग प्रोफेसरशिप से उन्हें सम्मानित किया गया था। राजनीति में उनकी अहम भूमिका रही। 1949 से 1952 तक वह भारतीय राजदूत के रूप में पहचाने जाते थे। 1952 में उन्हें भारत का उपराष्ट्रपति बनाया गया और 1962 तक उन्होंने यह पद संभाला। इसके बाद 13 मई 1962 से 1967 तक वह भारत के राष्ट्रपति पद पर काबिज रहे।