न्याय की देवी की आंखों पर क्यों होती थी काली पट्टी, जानें क्या कहता है हाथों का तराजू

सुप्रीम कोर्ट द्वारा न्याय की देवी की प्रतिमा में बदलाव करते हुए काली पट्टी हटा दी गई है और तलवार की जगह संविधान की किताब ने ले ली है। लेकिन क्या आपको पता है न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी और हाथों में तराजू क्यों होता है। चलिए इस बारे में जानते हैं।

Bhawna Choubey
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Goddess Of Justice: भारत के कानून और संविधान के बारे में हम सभी ने सुना और पढ़ा है। सिर्फ भारत के लोगों को ही नहीं बल्कि दुनिया में रहने वाले कई लोगों को हमारे कानून के बारे में जानकारी है। इन सब चीजों के बारे में हमने सुना तो है लेकिन न्याय की देवी के बारे में जानने की शायद ही हमने कभी कोशिश की होगी। हम सभी ने देखा है की अदालत में न्याय की देवी की प्रतिमा रखी हुई रहती है। फिल्मों में भी हम न्याय की देवी की आंखों पर काली पट्टी बंधी हुई देखते हैं।

न्याय के देवी के प्रतिमा में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा बदलाव किया गया है। इस प्रतिमा से अब काली पट्टी हटा दी गई है और तलवार की जगह संविधान की किताब नजर आ रही है। नई प्रतिमा यह बताती है कि भारत का कानून न तो अंधा है और ना ही दंडात्मक रवैया अपनाता है। यह तो बात हुई नई प्रतिमा की लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी क्यों बंधी होती थी। चलिए आज हम आपको इस बारे में बताते हैं।

अदालत में न्याय की देवी (Goddess of Justice)

फिल्मों में अक्सर हमें जज की कुर्सी के पास न्याय की देवी की मूर्ति दिखाई देती है। जिसकी आंखों पर पट्टी बंधी होती है और एक हाथ में तलवार नजर आती है और दूसरे हाथ में तराजू होता है। इस प्रतिमा को लेडी जस्टिस के नाम से पहचाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यह न्याय व्यवस्था को दर्शाने का काम करती है। हालांकि, इसके प्रतीक और महत्व के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है।

क्यों बंधी है काली पट्टी

न्याय की देवी की आंखों पर काली पट्टी बंधी होती है। आंखों पर पट्टी बंधी होने का मतलब लोग कानून को अंधा होना बताते हैं, लेकिन इसका मतलब यह है की अदालत द्वारा न्याय की जंग में किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जाएगा। व्यक्ति छोटा हो या बड़ा, अमीर हो या गरीब उसके बीच कभी अंतर नहीं समझा जाएगा। हर मामले में दोनों पक्षों को अपनी दलील पेश करने का उचित मौका दिया जाएगा। दलील सुनने के बाद निष्पक्ष निर्णय सुनाया जाएगा।

क्या कहता है तराजू

जस्टिस ऑफ गॉड की अब तक की प्रतिमा में एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में तलवार दिखाई देती है। इस तराजू को न्याय का प्रतीक माना जाता है। प्रतिमा में तराजू यह बताता है कि न्याय में समानता रखी जाएगी। न्याय करते समय किस तरह संतुलन बनाया जाए यह तराजू उसी को दर्शाता है।


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Bhawna Choubey

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इस रंगीन दुनिया में खबरों का अपना अलग ही रंग होता है। यह रंग इतना चमकदार होता है कि सभी की आंखें खोल देता है। यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि कलम में बहुत ताकत होती है। इसी ताकत को बरकरार रखने के लिए मैं हर रोज पत्रकारिता के नए-नए पहलुओं को समझती और सीखती हूं। मैंने श्री वैष्णव इंस्टिट्यूट ऑफ़ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन इंदौर से बीए स्नातक किया है। अपनी रुचि को आगे बढ़ाते हुए, मैं अब DAVV यूनिवर्सिटी में इसी विषय में स्नातकोत्तर कर रही हूं। पत्रकारिता का यह सफर अभी शुरू हुआ है, लेकिन मैं इसमें आगे बढ़ने के लिए उत्सुक हूं।मुझे कंटेंट राइटिंग, कॉपी राइटिंग और वॉइस ओवर का अच्छा ज्ञान है। मुझे मनोरंजन, जीवनशैली और धर्म जैसे विषयों पर लिखना अच्छा लगता है। मेरा मानना है कि पत्रकारिता समाज का दर्पण है। यह समाज को सच दिखाने और लोगों को जागरूक करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। मैं अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करूंगी।

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