भारत के राष्ट्रपति को “राष्ट्रपति” क्यों कहा जाता है? जानिए इसका इतिहास

Atul Saxena
Published on -

नई दिल्ली, डेस्क रिपोर्ट। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को “राष्ट्रपत्नी” कहकर सम्बोधित किये जाने का मामला संसद से लेकर सड़क तक छाया हुआ है। कांग्रेस के नेता जहाँ अपने नेता अधीर रंजन चौधरी (Congress MP Adhir Ranjan Chowdhury calls Draupadi Murmu Rashtrapatni) को डिफेंड कर रहे हैं तो वहीं भाजपा (BJP) इसे राष्ट्रपति पद सहित आदिवासी महिला का अपमान बताकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) से माफी मांगने की जिद कर रही है।

हालांकि कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu) को पत्र लिखकर अपने कहे शब्द पर खेद जताया है।  उन्होंने कहा कि उनकी हिंदी ठीक नहीं है इसलिए जुबान फिसल गई। उधर भाजपा का कहना है कि जब अपमान सार्वजनिक रूप से किया है तो माफी भी सार्वजनिक रूप से मांगनी होगी। बहरहाल अभी ये मामला ठंडा नहीं हुआ है।

ये भी पढ़ें – Commonwealth Games 2022 : संकेत महादेव सरगर ने जीता सिल्वर मेडल, पदक तालिका में भारत का खुला खाता

अब हम आपको बताते है कि भारत के राष्ट्रपति को राष्ट्रपति ही क्यों कहा जाता है? इसे जेंडर के अनुसार बदला क्यों नहीं जा सकता। इसका  इतिहास बहुत पुराना है और जब इस शब्द को तय किया गया था तब भी ये चर्चा हुई थी कि यदि इस पद पर कोई महिला बैठेगी तो क्या होगा ? फिर निर्णय हुआ कि महिला हो या पुरुष वो देश का राष्ट्रपति ही कहलायेगा।

ये भी पढ़ें – IRCTC की श्री रामायण यात्रा का नया कार्यक्रम जारी, इस दिन से शुरू होगा टूर

गौरतलब है कि राष्ट्रपति शब्द को अंग्रेजी में प्रेसीडेंट कहते हैं, इस शब्द का किसी लोकतान्त्रिक देश सबसे पहले अमेरिका के शासक के लिए हुआ था। जॉर्ज वाशिंगटन को सबसे पहले प्रेसीडेंट कहा गया था।  प्रेसीडेंट शब्द फेन्स और लेटिन दो शब्दों को मिलकर बना है।

आजादी से पहले संविधान सभा में भारत में भी राष्ट्रपति शब्द पर चर्चा हुई। तब कहा गया कि अंग्रेजी में तो प्रेसीडेंट ठीक है लेकिन हिंदी में इसे राष्ट्रपति कहना ठीक नहीं होगा। तब इस पर बहुत चर्चा और बहस हुई। जुलाई 1947 में राष्ट्रपति की जगह  “राष्ट्रकर्णधार” और “राष्ट्र नेता” जैसे शब्द सुझाये गए। लेकिन इसपर सहमति नहीं बनी।

बाद में ये मामला एक समिति को सौंप दिया गया, फिर तय हुआ कि प्रेसीडेंट ऑफ इंडिया के लिए राष्ट्रपति शब्द ही इस्तेमाल होगा।   दिसंबर 1948 में इस पर फिर बहस शुरू हुई।  अंबेडकर ने “हिंद का एक प्रेसीडेंट” कहकर इसे संविधान मसौदे में रखने के लिए कहा, अंग्रेजी में इसे प्रेसीडेंट ही कहा गया।

लेकिन इसपर भी सहमति नहीं बनी , फिर हिंदी में मसौदे में इसे “प्रधान” लिखा गया और उर्दू में “सरदार”, संविधान सभा के सदस्य केटी शाह ने प्रेसीडेंट के लिए ” द चीफ एक्जीक्यूटिव” और राष्ट्रपति के “राष्ट्र का प्रधान” शब्दों का सुझाव दिया। लेकिन यहाँ भी सहमति नहीं बनी।  अंत में जवाहर लाल नेहरू ने अंग्रेजी के लिए “प्रेसीडेंट” और हिंदी के लिए “राष्ट्रपति” शब्द पर मुहर लगा दी।  तब से भारत के राष्ट्रपति पद पर चाहे पुरुष बैठे या महिला , वो राष्ट्रपति ही कहलाता है।


About Author
Atul Saxena

Atul Saxena

पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

Other Latest News