पायलट बनने के सपने पर लगा गरीबी का ग्रहण, युवक को नहीं मिल रही शासन-प्रशासन से कोई मदद

Gaurav Sharma
Published on -

बैतूल, वाजिद खान। आसमान में उड़ने का जो ख्वाब उसने बचपन में देखा था वो अब टूटने की कगार पर है। उसकी पढ़ाई में घर बिक गया,जमीन बिक गयी और कर्ज का बोझ बूढ़े रिटायर पिता पर अभी भी चढ़ा हुआ है। यह दास्तान उस युवा की है जो बीते दो साल से पायलट की ट्रेनिंग का आधा हिस्सा पूरा करने के लिए भटक रहा है। हम यहां बात मध्य प्रदेश के बैतूल के उस युवा की कर रहे है जो पायलट बनने का ख्वाब संजो रहा था लेकिन हताश होकर एक मोबाइल रिपेयरिंग शॉप पर नौकरी कर रहा है।

23 साल का रामकुमार पटने का बचपन से पायलट बनने का ख्वाब था। इसके लिए उसने दिन रात कर खूब पढ़ाई की। यहां तक कि मुंबई स्थित स्काई लाईन एविएशन क्लब से पायलट बनने के लिए पार्ट वन की सारी थ्योरी में पूरी कर ली, लेकिन अब पेंच उसके पार्ट टू यानि प्रेक्टिकल फ्लाइंग पर आ फंसा है। यह ट्रेनिंग अमेरिका स्थित शिकागो में होना है। लेकिन उसके पास इसके लिए फूटी कौड़ी नही है।


About Author
Gaurav Sharma

Gaurav Sharma

पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है। इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।