जबलपुर : जिन सर्जिकल ग्लव्स और थ्रेड की कमी हॉस्पिटल में आई, वहीं बेचे जा रहे साईकिल स्टैंड और टपरों पर

Gaurav Sharma
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जबलपुर, संदीप कुमार। एक तरफ सरकार अपने अस्पतालों की व्यवस्थाएं पुख्ता होने के दावे करती है और दूसरी तरफ सरकारी अस्पतालों में मरीजों को लुटने के नए-नए किस्से सामने आ रहे हैं। ताजा मामला जबलपुर के रानी दुर्गावती एल्गिन हॉस्पिटल का है, जहां अस्पताल में सर्जिकल साजो सामान की कमी का फायदा साईकिल स्टैंड से चाय-पानी के टपरे लगाने वाले उठा रहे हैं।

अस्पताल में सर्जिकल ग्लव्स और थ्रेड की कमी होने से ये साजोसामान साईकिल स्टैंड और अस्पताल के सामने लगने वाले ठेले-टपरों में बेचे जा रहे हैं। एक मरीज के परिजन की ओर से मामले की शिकायत सीएम हैल्पलाईन में भी की गई है, जिसकी पुष्टि खुद अस्पताल प्रबंधन ने की है। सीएम हैल्पलाईन में शिकायत की गई है कि ऑपरेशन थिएटर में लगने वाले जो ग्लव्स और थ्रेड अस्पताल में मिलने चाहिए उनकी यहां कमी है और ऐसे साजोसामान अस्पताल के बाहर सायकल स्टैंड और दुकानों में बेचे जा रहे हैं।

शिकायत की पुष्टि करते हुए अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि उन्होने अनधिकृत रुप से सर्जिकल ग्लव्स और थ्रेड बेचने वालों पर कार्यवाई की मांग की है और इसके लिए जबलपुर एसपी को लिखित शिकायत भी दी है। अस्पताल प्रबंधन के मुताबिक आपूर्ति कम होने की वजह से अस्पताल में कभी कभी ग्लव्स या थ्रेड की कमी हो जाती है, जिसका फायदा सड़क में दुकानें लगाने वाले लोग उठा रहे हैं। अस्पताल के आरएमओ डॉक्टर संजय मिश्रा के मुताबिक वो अपने स्तर पर व्यवस्थाओं को ठीक कर रहे हैं और मामले पर कार्रवाई के लिए उन्होने जबलपुर के एसपी को पत्र भी लिखा है।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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